इस साल केंद्र सरकार का कर संग्रह तेल बॉन्ड के बकाये और ब्याज के खिलाफ 20,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने के काम आया है। यह आने वाले वर्षों में तेल बॉन्ड पर केंद्र के ब्याज को कम करेगा और इस उद्देश्य के लिए यह किसी भी वित्त वर्ष में किया गया अब तक का सबसे बड़ा भुगतान है।
हालांकि चिंताजनक बात यह है कि ये बॉन्ड उस वक्त जारी किए गए थे, जब ब्याज दरें अधिक थीं। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत आवेदन के जरिये जुटाई गई जानकारी के मुताबिक इन बॉन्ड पर ब्याज दर का दायरा 6.35 फीसदी से लेकर 8.4 फीसदी के बीच है।
अलबत्ता उत्पाद शुल्क से केंद्र का संग्रह बॉन्ड के लिए उसे जो भुगतान करना है, उससे खासा अधिक है। चालू वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों के दौरान इसे 72,360.79 करोड़ रुपये मिले थे। वर्ष 2020-21 में उत्पाद शुल्क संग्रह 3.72 लाख करोड़ रुपये रहा था, जो वर्ष 2014-15 (वित्त वर्ष 15) के बाद से सबसे अधिक था। हालांकि उत्पाद शुल्क संग्रह का 41 प्रतिशत हिस्सा संवैधानिक केंद्र-राज्य की राजस्व हिस्सेदारी के हिस्से के रूप में राज्यों को चला जाता है, लेकिन अब भी केंद्र सरकार के पास तेल बॉन्ड पर अपने व्यय की तुलना में अधिक राशि बचती है।
सरकारी ऋण (वर्ष 2018-19) पर स्थिति पत्र के अनुसार इन विशेष प्रतिभूतियों पर देनदारियों में वर्ष 2005-06 और वर्ष 2008-09 के बीच काफी इजाफा हुआ था। इतना अधिक ऋण संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा देश में ईंधन की कीमतों को कम रखने का विकल्प चुनने, लेकिन सब्सिडी का बोझ बाद की तारीख पर डालने की वजह से हो गया था।
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के लिए ये तेल बॉन्ड राजनीतिक मुद्दा बन गए हैं। वाहन ईंधन पर अधिक कराधान की वजह के तौर पर इनका हवाला दिया जाता है।
यह एक ऐसा कथन रहा है, जिसे सत्तारूढ़ सरकार के कई मंत्रियों ने बार-बार दोहराया है। इस साल अगस्त में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इन बॉन्ड को पिछली सरकार की तिकड़म बताया था। बाद में सितंबर में पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इन बकाया भुगतानों का कराधान स्तर बनाए रखने के कारण के रूप में उल्लेख किया था, जो तब पेट्रोल और डीजल पर 50 प्रतिशत (केंद्र और राज्य दोनों के शुल्कों के साथ) से अधिक था।
कुछ राज्यों में डीजल और पेट्रोल दोनों पर प्रति लीटर 100 रुपये से अधिक की कीमत की वजह से शुल्क कम करने के लिए होने वाले हो-हल्ले के कारण अंतत: केंद्र को मजबूर होकर झुकना पड़ा था। 4 नवंबर को पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क पांच रुपये कम करके 27.9 रुपये प्रति लीटर कर दिया गया और डीजल पर इसे 10 रुपये कमकरके 21.8 रुपये प्रति लीटर कर दिया गया। इसके बाद अधिकांश राज्यों ने महंगाई बढ़ाने वाली उन ताकतों को वश में करने के लिए वाहन ईंधन पर लगाए गए मूल्य संवर्धित कर को कम किया, जो कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में वृद्धि के रूप में बढ़ रही थीं। बिजनेस स्टैंडर्ड को दिए गए आरटीआई के जवाब के अनुसार 31 मार्च तक लगभग 1.3 लाख करोड़ रुपये का तेल बॉन्ड बकाया था। इस साल 16 अक्टूबर और 28 नवंबर को भुगतान की गई 5,000 करोड़ रुपये की दो किस्तों से इनकी बकाया राशि में कमी आई है, जिससे यह राशि कम होकर 1.2 लाख करोड़ रुपये रह गई है। तेल बॉन्ड का ऋण कम करने के लिए 31,150 करोड़ रुपये का अगला भुगतान अब 10 नवंबर, 2023 को किया जाएगा।
मौजूदा 10,000 करोड़ रुपये का भुगतान वित्त वर्ष 2015 के बाद से तेल बॉन्ड का बकाया कम करने के लिए किया गया पहला भुगतान है। उस समय केंद्र द्वारा 3,500 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था, जिससे 1.34 लाख करोड़ रुपये के बकाये में कमी आई थी। जहां एक ओर तेल बॉन्ड की बकाया राशि काफी हद तक अपरिवर्तित रही है, वहीं दूसरी ओर केंद्र सालाना ब्याज लागत वहन कर रहा था।
