आनुवंशिक इंजीनियरिंग आकलन समिति (जीईएसी) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) हाइब्रिड सरसों डीएमएच-11 को पर्यावरण में जारी करने की सिफारिश की है। इससे जीएम सरसों के वाणिज्यीकरण की राह आसान हो गई है।
इस मंजूरी के साथ ही जीएम सरसों के बीज का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू होने और आगे परीक्षण जारी रहने की संभावना बढ़ गई है। हालांकि इसे पर्यावरण कार्यकर्ताओं और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वैचारिक संगठन आरएसएस से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच जैसे समूहों के विरोध का भी सामना करना पड़ सकता है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स के डॉ. दीपक पेंटल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘अब यदि सभी कदम समय पर उठाए गए तो किसानों को अगले दो वर्षों में जीएम आधारित सरसों के बीज मिल सकते हैं।’ पेंटल धारा हाइब्रिड सरसों (डीएमएच)-11 के लिए काम करने वाले प्रमुख व्यक्तियों में शामिल हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय और नैशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) डीएमएच-11 के लिए संयुक्त आवेदक हैं। जीईएसी ने कहा कि डीएमएच-11 संकर का वाणिज्यिक उपयोग बीज अधिनियम 1966 और संबंधित नियमों एवं विनियमों पर निर्भर करेगा।
डीएमएच-11 ने पारंपरिक एवं सरसों की मौजूदा किस्मों के मुकाबले 30 फीसदी अधिक उत्पादकता दिखाई है। सरसों की मौजूदा किस्मों की औसत उपज 1,000 से 1,200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है जबकि वैश्विक औसत 2,000 से 2,200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से अधिक है।
साल 2017 में चौतरफा विरोध के कारण ऐसी ही एक मंजूरी को वापस लेना पड़ा था। इस बार भी फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि इसे सभी मंजूरियां मिल जाएंगी अथवा मंत्री से हरी झंडी मिल ही जाएगी। हालांकि जीएम का समर्थन करने वाले समूहों को उम्मीद है कि जीईएसी बैठक के दस्तावेजों में मंजूरी बताने का मतलब साफ है कि सरकार ने एक बड़ा कदम बढ़ाया है।
बैठक के विवरण में कहा गया है कि जीएम सरसों पर अगले दो वर्षों भीतर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के साथ संयुक्त रूप से आगे के अध्ययन और समन्वित परीक्षण किए जाने चाहिए। समिति की 18 अक्टूबर को हुई बैठक के दस्तावेज में यह बात कही गई है जिसे आज वेबसाइट पर अपलोड भी कर दिया गया है।
जीईएसी ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि मंजूरी पत्र जारी होने की तिथि से चार वर्षों के लिए जीएम सरसों को जारी करने की सिफारिश की गई है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की देखरेख में नई मूल एवं संकर किस्मों के विकास के लिए जीएम सरसों संकर डीएमएच-11 और उसकी मूल किस्मों बारस्टार एवं बार जीन वाली एमओडीबीएस 2.99 और बार्नेज एवं बार जीन वाली किस्म बीएन 3.6 का उपयोग किया जाएगा। भारत में करीब 65 से 7 लाख हेक्टेयर भूमि पर सरसों की खेती की जाती है। इसकी खेती मुख्य तौर पर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश में की जाती है।
इस बीच, आरएसएस से संबद्ध स्वदेशी जागरण मंच ने भी कहा है कि उसे उम्मीद है कि अंतिम अनुमोदन के लिए सक्षम अधिकारी इसे अंतिम मंजूरी नहीं देंगे।
स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘ जीएम सरसों की यह किस्म न तो स्वदेशी है जैसा किस 2017 में दावा किया गया था और न ही सुरक्षित। साल 2017 में जो तथ्य बताए गए थे उनमें कोई बदलाव नहीं हुआ है। यह जीएम सरसों किस्म आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है।
साथ ही यह किसानों के लिए भी सही नहीं है। इसलिए हम लगातार इसका विरोध करेंगे। हमने सरकार से भी आग्रह किया है कि जीईएसी की सिफारिश जैसे किसी झांसे में न आएं।’द कोएलिशन फॉर जीएम-फ्री इंडिया ने एक बयान में कहा कि जो कुछ हुआ है वह स्तब्धकारी है क्योंकि इसमें न तो कोई वैज्ञानिकता है और न ही कोई नियमन जिम्मेदारी।
