फल और सब्जी उत्पादकों से की जा रही कमीशन वसूली के खिलाफ पर्वतीय राज्यों ने लामबंद हो दिल्ली सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है। इन प्रदेशों ने कमीशन वसूली को गैरवाजिब बताया है।
जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के मंत्रियों ने दिल्ली सरकार को चेतावनी दी है और कहा है कि वसूली के जारी रहने पर वे अपनी अलग मंडी स्थापित कर लेंगे। इन राज्यों का यह भी कहना है कि वे अपने उत्पादकों को दिल्ली आने के लिए हतोत्साहित करेंगे। इन राज्यों ने इस मामले में केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार से तुरंत हस्तक्षेप करने की मांग की है।
जबकि तीनों प्रदेशों के मंत्रियों ने इस संबंध में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से मुलाकात भी की। हिमाचल प्रदेश के बागवानी मंत्री नरिंदर बरागटा ने बताया-विभिन्न प्रदेशों के फल और सब्जी उत्पादकों से कमीशन लेने की इजाजत कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) का कानून नहीं देता। कानून के मुताबिक, कमीशन सिर्फ खरीदारों से वसूला जा सकता है पर दिल्ली की आजादपुर मंडी में उत्पादकों से 6 से 8 फीसदी तक कमीशन वसूला जा रहा है। इन राज्यों का आरोप है कि आजादपुर मंडी के कमीशन एजेंट उनके यहां से आने वाले ट्रकों को भी कमीशन देने के लिए बाध्य करते हैं।
उत्तराखंड के कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने हिमालयी राज्यों के कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए दिल्ली में अलग से मंडी स्थापित करने की मांग की है। उन्होंने बताया कि सालाना करीब 500-1500 करोड़ रुपये इन राज्यों से कमीशन के रूप में लिए जा रहे हैं जो मुनासिब नहीं है। दिल्ली की मंडियों में सबसे अधिक फल और बेमौसमी सब्जियों की आवक इन्हीं प्रदेशों से होती है। रावत ने इस बात पर भी ऐतराज जताया कि दिल्ली की मंडी में आने वाले उत्पादकों को ठहरने-रहने की सुविधा नहीं दी जाती।
बरागटा के अनुसार, उत्पादकों से कमीशन वसूलने के काम को जल्दी बंद न किया गया तो वे अपने उत्पादकों को दिल्ली आने से हतोत्साहित करेंगे। उनके उत्पाद की बिक्री के लिए उन्होंने हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब सरकार से बात की है। इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश के सोनल, शिमला, रामपुर और कई अन्य जगहों पर मंडी बनाने की पहल की जा चुकी है।
उत्तराखंड के कृषि मंत्री ने भी उनकी बातों से सहमति जताया और कहा कि वे दिल्ली में पर्वतीय राज्यों की अलग मंडी स्थापित करने के लिए जमीन खरीदने को तैयार हैं। गौरतलब है कि पिछले महीने शिमला में पर्वतीय राज्यों के बागवानी मंत्रियों की एक बैठक हुई थी जिसमें इन राज्यों के फल और सब्जी उत्पादकों की समस्या पर विचार किया गया था।