पर्यावरण में हो रहे बदलाव की मार खाद्य पदार्थों के उत्पादन पर भी पड़ने वाली है। 2020 तक विश्व कृषि उत्पाद की जीडीपी में 16 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है।
इस कारण खाद्य पदार्थों की कीमत आसमान पर जाने की आशंका जताई जा रही है। इन बातों का खुलासा इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीटयूट (आईएफपीआरआई) की एक रिपोर्ट में किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विकासशील देशों पर पर्यावरण बदलाव का असर विकसित देशों के मुकाबले काफी गंभीर होगा। विकासशील राष्ट्रों की उपज में विकसित राष्ट्रों के मुकाबले ज्यादा गिरावट आने की आशंका जताई गई है।
कहा गया है कि विकास की ओर अग्रसर देशों के उत्पादन में जहां 20 फीसदी तक की गिरावट हो सकती है वही विकसित राष्ट्रों में गिरावट का प्रतिशत 6 तक जा सकता है।
रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि इससे सिर्फ खाद्य पदार्थों की पैदावार में ही कमी नहीं आएगी बल्कि विश्व स्तर पर इसकी कीमत में भी काफी तेजी दर्ज की जाएगी।
इस बात की आशंका जाहिर की गई है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण आने वाले समय में खाद्य पदार्थों की कीमत में 40 फीसदी की बढ़ोतरी होगी।
तापमान में लगातार बढ़ोतरी के कारण सूखे व बाढ़ की आशंका भी बढ़ती जा रही है जिससे अनाज की फसल में भारी कमी आएगी।
इस बात का अनुमान लगाया गया है कि 2080 तक विश्व के 40 देशों में अनाज की उपज में 15 फीसदी तक की गिरावट हो सकती है।
पर्यावरण बदलाव से खाद्य उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। जिससे विश्व स्तर पर खाने की चीजों की मांग की पूर्ति में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
इस कारण से कई विकासशील देश खाद्य पदार्थों के मामले में अन्य देशों के निर्यात पर निर्भर रहेंगे।
आईएफपीआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरण बदलाव के कारण उत्पादन में आई गिरावट की भरपाई तकनीकी बदलाव से भी संभव नहीं है।
रिपोर्ट में इस बात का सुझाव दिया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे पर होने वाली बहस में इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।