साल 2008 में ज्यादातर खाद्यान्न में हुई जोरदार बढ़त के बाद इस साल इन चीजों में नरमी का रुख देखा जा सकता है।
इस साल गेहूं, चावल और खाद्य तेल की कीमत पिछले साल के मुकाबले काफी कम रहेगी यानी इसमें बहुत ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होने वाली।
हालांकि पिछले दो साल से नरम रही चीनी की कीमत उपभोक्ताओं के लिए कड़वी साबित हो सकती है। इंटरनैशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिटयूट के निदेशक (एशिया) अशोक गुलाटी ने कहा कि इस साल खाद्यान्न की महंगाई दर 5 फीसदी या फिर इससे नीचे सिमट जाएगी।
उन्होंने कहा कि कुछ इलाकों में गेहूं की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे आ जाएगी। चावल की अधिकता को देखते हुए इसका हाल भी कमोबेश गेहूं की तरह ही रहेगा। गुलाटी ने कहा कि देश को जितने खाद्यान्न की जरूरत है, सरकार के पास उससे 50 फीसदी ज्यादा है।
ऐसे में खाद्यान्न की कीमत दबाव में रहेगी। इसके अलावा मुख्य रबी फसल की बुआई पिछले साल के मुकाबले ज्यादा हुई है। गेहूं, दलहन और तिलहन का रकबा भी पिछले साल के मुकाबले बढ़ा है।
रबी सीजन में रबी फसल का रिकॉर्ड उत्पादन हो सकता है और ऐसे में भारतीय खाद्य निगम गेहूं की रिकॉर्ड खरीद कर सकता है।
बंपर उत्पादन की वजह से कीमतें पर इसका दबाव देखा जा सकता है, हालांकि इन चीजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया गया है। सरका के पास फिलहाल 1.96 करोड़ टन गेहूं और 1.56 करोड़ टन चावल (1 दिसंबर तक) का स्टॉक है, ऐसे में अगर कीमत के मामले में कोई अनहोनी हो तो फिर सरकार खुले बाजार में इसे लेकर उतर सकती है।
गुलाटी ने कहा कि सरकार को कुछ कदम उठाने पड़ेंगे। मसलन निर्यात की अनुमति और स्टॉक रखने की सीमा में थोड़ी ढील देनी पड़ेगी ताकि इन चीजों की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे न जाने पाए।
सरकार ने घरेलू बाजार में इन चीजों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने और कीमत पर लगाम लगाने के मकसद से निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी।
खाद्य तेल के मामले में भारत मुख्यत: आयात पर निर्भर है, पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी गिरती कीमत एक अच्छा संकेत है। गुलाटी ने कहा कि उत्पादन कम होने के अनुमानों को देखते हुए चीनी की कीमतों का बढ़ना निश्चित था।
केंद्र सरकार चीनी की कीमतों पर लगातार निगाह बनाए हुए है। अगर थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई में इसकी कीमतों का बढ़ना परिलक्षित होता है तो सरकार निश्चित तौर पर कदम उठाएगी।
थोक मूल्य सूचकांक में चीनी की हिस्सेदारी 3.62 प्रतिशत की है जो सीमेंट (1.73 प्रतिशत), गेहूं (1.38 प्रतिशत) से अधिक और लौह-इस्पात (3.64 प्रतिशत) से थोड़ी कम है।
हाल में चीनी की कीमतों में हुई बढ़ोतरी को देखते हुए सरकार ने जनवरी से मार्च की अवधि के लिए 50 लाख टन का कोटा आवंटित किया है जो पिछले साल की पहली तिमाही के 44 लाख टन के आवंटन से अधिक है।