उवर्रक उद्योग ने सरकार से सब्सिडी सरकारी बॉन्ड के रूप में नहीं बल्कि नकद रूप में देने की मांग की है।
उवर्रक उद्योग का कहना है कि दीर्घाकालिक विशेष प्रतिभूति भारी डिस्काउंट पर बिक रहा है जिससे कंपनियों की बैलेंस शीट प्रभावित हो रही है। फर्टिलाइजर असोसिएशन ऑफ इंडिया के महानिदेशक सतीश चन्द्र ने बताया कि फर्टिलाइजर कंपनियों को दिया गया बॉन्ड करीब 15 फीसदी के डिस्कांउट पर चल रहा है। इसलिए 100 रुपये के अंकित मूल्य वाले बॉन्ड से केवल 85 रुपये ही प्राप्त होंगे।
इसका तात्पर्य यह हुआ कि सरकार 100 रुपये के बकाए पर 85 रुपये का ही भुगतान कर रही है। उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि चूंकि ये बॉन्ड मंजूर किए गए प्रतिभूतियों के तहत वर्गीकृत हैं, इसलिए बैंक और निवेश कंपनियां इन्हें खरीदने के लिए बाध्य नहीं हैं। यह स्थिति उन्हें अन्य एएए रेटेड निगमित बॉन्डों की तुलना में कम आकर्षक बनाते हैं।
एफएआई के अधिकारी ने कहा कि कंपनियां उवर्रकों की डिलिवर लागत की मांग करती हैं। उन्हें कच्चे माल प्रदान करने वालों, ट्रांसपोर्टरों और अन्य को नकद देना होता है। इससे भी आगे जब वे कर जमा करते हैं तो उन्हें यह नकद में देना होता है। इसलिए उन्हें नकद की जरूरत है न कि बॉन्ड की।
चन्द्र ने कहा कि इन सबके अलावा सरकार 31,000 रुपये प्रति टन के हिसाब से यूरिया का आयात करता है जबकि घरेलू उत्पादकों को 13,000 रुपये प्रति टन की प्राप्ति होती है। उन्होंने बताया कि सरकार विदेशी विक्रेताओं को नकद में भुगतान करती रही है। विशेषज्ञ ने कहा कि इसके अलावा बॉन्ड के रूप में भुगतान नकदी संकट से जूझ रहे उवर्रक क्षेत्र के लिए आर्थिक रूप से व्यवहारिक विकल्प नहीं है।