रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण लौह एवं गैर-लौह धातुओं की कमी को लेकर व्यापक आंशका के बीच पिछले दो सप्ताह के दौरान इन वस्तुओं की कीमतों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।
लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) पर 23 फरवरी से 8 मार्च के बीच तीन महीने के वायदा में निकेल की कीमतों में 97 फीसदी, जस्ता में 16 फीसदी, एल्युमीनियम में 6.2 फीसदी और तांबे में 3.5 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। क्रिसिल रिसर्च के अनुसार, पिछले दो सप्ताह के दौरान इस्पात-एफओबी चीन
की कीमतों में 4 फीसदी की वृद्धि हुई है।
रूस धातुओं का एक प्रमुख उत्पादक देश है। निकेल के उत्पादन में उसका योगदान 6 से 8 फीसदी और एल्युमीनियम के उत्पादन में 6 फीसदी है। साथ ही इस्पात के वैश्विक व्यापार में उसकी हिस्सेदारी 13 फीसदी है। यूक्रेन भी करीब 1.5 करोड़ टन इस्पात का निर्यात करता है।
घरेलू बाजार में एल्यूमीनियम, तांबा और जस्ते की कीमतें एलएमई के अनुरूप होती हैं जबकि इस्पात की कीमतों से वैश्विक रुझान का भी पता चलता है। उपयोगकर्ता उद्योगों के अधिकारियों के अनुसार, धातु कंपनियां पहले ही संकेत दे चुकी हैं कि वे कीमतों में वृद्धि कर सकती हैं।
वाहन कलपुर्जा बनाने वाली पुणे की कंपनी के एक अधिकारी ने कहा, ‘हमारे वेंडरों- इस्पात, एल्युमीनियम एवं तांबे के आपूर्तिकर्ताओं- ने हमें इस महीने के अंत तक खत्म होने वाले अनुबंध के बाद कीमत वृद्धि के लिए तैयार रहने के संकेत दिए हैं।’ कंपनी टाटा मोटर्स सहित अन्य प्रमुख वाहन विनिर्माताओं को अपना प्रमुख ग्राहक मानती है।
इस क्षेत्र में मुख्य तौर पर छह महीने के लिए अनुबंध किए जाते हैं। एक प्रमुख वाहन विनिर्माता के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि यदि रूस का आक्रमण जारी रहा तो युद्ध का प्रभाव दिखना शुरू हो जाएगा। उन्होंने कहा, ‘मध्यावधि में आपूर्ति बाधित होने के कारण इनपुट लागत बढ़ सकती है। दीर्घावधि में उसका असर उत्पादन पर भी दिख सकता है।’
क्रिसिल रिसर्च के निदेशक हेतल गांधी ने बताया कि वाहन क्षेत्र के राजस्व में कच्चे माल की लागत की हिस्सेदारी 60 से 70 फीसदी होती है। उन्होंने कहा कि कच्चे माल की कुल लागत में धातुओं पर निर्भरता करीब 25 फीसदी होती है।
कंज्यूमर ड्यूरेबल विनिर्माता भी अपने उत्पादों के दाम बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं। एल्युमीनियम, इस्पात और तांबे की कीमतों में पिछले सात से दस दिनों के दौरान उल्लेखनीय तेजी आई है। उषा इंटरनैशनल के अध्यक्ष (इलेक्ट्रिक फैन, वाटर हीटर एवं पंप) रोहित माथुर ने कहा कि धातु कीमतों में तेजी काफी घातक है और हमने देखा है कि कीमतें उच्च स्तर पर बरकरार हैं।
माथुर ने कहा कि कंपनी स्थिति पर नजर रख रही है। उन्होंने कहा कि इनपुट लागत के अलावा डॉलर में उतार-चढ़ाव के बीच अप्रैल में 10 से 15 फीसदी तक मूल्य वृद्धि हो सकती है।
उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स एवं अप्लायंसेज विनिर्माताओं के संगठन सीईएएमए के अध्यक्ष एरिक ब्रगेंजा ने भी कहा कि अप्रैल के अंत तक कीमतों में वृद्धि हो सकती है लेकिन फिलहाल यह बताना कठिन होगा कि कीमतें कितनी बढ़ेंगी। उन्होंने कहा, ‘यदि कच्चे माल की कीमतें मौजूदा स्तर पर बरकरार रहीं और तेल कीमतों में तेजी के कारण भाड़े में बढ़ोतरी जारी रही तो सबकुछ बर्बाद हो जाएगा।’
ऐसा नहीं है कि केवल अंतिम उपयोगकर्ताओं को ही लागत संबंधी दबाव का सामना करना पड़ रहा है। इस्पात विनिर्माताओं के लिए भी इनपुट लागत में बढ़ोतरी हुई है। लौह अयस्क की कीमतें बढ़ गई हैं, कोकिंग कोल की कीमतें फिलहाल अपन सर्वकालिक ऊंचाई पर हैं और हार्ड कोकिंग कोल एफओबी ऑस्ट्रेलिया के दाम 560 डॉलर प्रति टन तक पहुंच चुके हैं।
आर्सेलरमित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया (एएम/एनएस इंडिया) के मुख्य विपणन अधिकारी रंजन धर ने कहा, ‘मार्च की शुरुआत से अब तक कीमतें 5 से 7 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं जबकि कोकिंग कोल, गैस, जस्ता, लौह अयस्क एवं अन्य कच्चे माल में तेजी के कारण उत्पादन लागत 25 फीसदी बढ़ चुकी है।’
