धान की वेरायटी पूसा-1121 को बासमती की श्रेणी में जगह नहीं देने से सबसे अधिक पंजाब के किसानों को नुकसान होने की आशंका है।
पूसा-1121 को वर्ष 2006 में बासमती की श्रेणी में लाया गया था। इसके बाद से पंजाब में इसकी खेती में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गयी। पंजाब में इस मौसम के दौरान सगभग 26 लाख हेक्टेयर पर धान की बिजाई की गयी है। इनमें से 1.5 लाख हेक्टेयर पर पूसा-1121 की बिजाई की गयी।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के मुताबिक वर्ष 2008-09 के दौरान लगभग पूसा – 1121 धान के 60 लाख क्विंटल की पैदावार की उम्मीद है। इस हिसाब से देखे तो पंजाब के किसानों को 400 करोड़ रुपये तक का नुकसान उठाना पड़ सकता है। बासमती व गैर बासमती चावल के मूल्य में 1000 रुपये प्रति क्विंटल का अंतर होता है।
विदेशों में इस वेरायटी की बढती मांग को देखते हुए हर साल इसके रकबे में बढ़ोतरी हो रही है। वर्ष 2006 के दौरान 50 हजार हेक्टेयर तो 2007 के दौरान लगभग 80 हजार हेक्टेयर पर इसकी खेती की गयी थी। हालांकि कृषि विश्वविद्यालय के कुछ वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि किसी भी वेरायटी को बासमती घोषित करने के लिए उसे कुछ मापदंडों पर खड़ा उतरना पड़ता है।
पूसा-1121 के दाने लंबे है और इसे पकाने पर इससे खुशबू भी खूब आती है। लेकिन असली बासमती और इसकी गुणवत्ता में कही न कही अंतर नजर आ जाता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस वेरायटी के एक क्विंटल धान से लगभग 67-68 किलोग्राम चावल निकलता है।
इस वेरायटी की सबसे अधिक खेती पंजाब के गुरदासपुर, अमृतसर, बरनाल, मुक्तसर व कपूरथला के इलाकों में की जाती है। इसकी खेती करने वाले किसानों की तरफ से भारतीय किसान यूनियन ने इसे बासमती घोषित करने की मांग की है।
यूनियन का कहना है कि इस साल धान के उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है ऐसे में इस वेरायटी को बासमती की श्रेणी में जगह नहीं देने से उन्हें आर्थिक क्षति होने के साथ उनके मनोबल पर भी विपरीत असर पड़ेगा।