देश के कृषि परिवारों पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण का बिजनेस स्टैंडर्ड द्वारा विश्लेषण करने पर पता चला है कि 2019 में किसानों को बाजार में अपनी प्रमुख फसलों को बेचने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दाम मिले। सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि 2013 में किसानों को कुछ फसलों के दाम एमएसपी से बेहतर मिले थे।
सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है कि इन छह वर्षों के दौरान किसानों ने अपने उत्पाद बेचने के लिए पहले से कहीं अधिक बार अनियंत्रित निजी बाजारों में स्थानीय व्यापारियों से संपर्क साधा और कृषि उत्पाद विपणन बाजार (एपीएमसी) की मंडियों में कम गए। इससे पता चलता है कि खुले बाजारों का रुख करने पर किसानों को छह वर्ष पहले के मुकाबले 2019 में एमएसपी से काफी कम दाम मिले।
मुश्किल से ही प्राप्त बाजार कीमतों में वास्तविक संदर्भों में वृद्घि हुई। जब एपीएमसी के दबदबे में स्पष्ट तौर पर कमी आई और कृषि बाजारों में स्थानीय व्यापारियों की संख्या बढ़ी तो किसानों को मिलने वाले दाम एमएसपी से कम रहे। इन नतीजों से किसानों को लाभकारी मूल्य मुहैया कराने के खुले बाजारों की क्षमता पर सवाल खड़े होते हैं।
इसके अलावा, किसानों को अनाज के लिए मिलने वाली कीमतों के राज्यवार आंकड़ों पर नजर डालें तो 2018-19 में केवल पंजाब और हरियाणा और कुछ हद तक छत्तीसगढ़ में धान के लिए एमएसपी से बेहतर मूल्य मिले।
ये बातें ऐसे समय पर और महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं जब विपणन और व्यापार पर लाए गए नए कृषि कानून न्यायालय में विचाराधीन हैं और इन्हें लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी का इंतजार है। विश्लेषण के लिए आंकड़े कृषि से संबंधित परिवारों की परिस्थिति आकलन और ग्रामीण भारत में परिवारों की जमीन तथा जोतों पर हाल में जारी की गई रिपोर्ट से लिए गए हैं। तुलना के लिए इसी रिपोर्ट के 2013 के संस्करण को आधार बनाया गया है।
बाजार भाव ने एमएसपी घटाने में दिया योगदान
किसी वर्ष में किसी खास फसल के लिए औसत किसान को मिलने वाली कीमत और उसकी एमएसपी के बीच के अंतर को 15 फसलों के लिए निकाला गया है। इनमें से आठ खरीफ- धान, ज्वार, बाजार, मक्का, रागी, अरहर, उड़द और मूंग तथा चार रबी- गेहूं, चना, मसूर और सरसों तथा तीन नकदी फसलें गन्ना, कपास और सोयाबीन हैं।
विश्लेषण से पता चलता है कि 2013 में सभी नकदी फसलों, दो रबी दालों- चना और मसूर, सरसों, एक खरीफ अनाज मक्का और एक खरीफ पोषक अनाज रागी को बाजार में बेचने पर एमएसपी से अधिक दाम मिले। इस प्रकार 15 में से इन 8 फसलों के लिए एक औसत भारतीय किसान को एमएसपी से बेहतर दाम मिले।
2019 में इन पंद्रह फसलों में से किसी के लिए भी किसानों को खुले बाजारों में एमएसपी से अधिक दाम नहीं मिले। इतना जरूर है कि 2013-19 की अवधि में सरकार ने सभी फसलों के एमएसपी में इजाफा किया। वास्तविक बाजार में भी सभी फसलों को 2013 की तुलना में 2019 में नाममात्र अधिक कीमत मिले। लेकिन वास्तविक संदर्भ में 15 में से केवल तीन फसलों धान, ज्वार और बाजरा को ही 2019 में अधिक मूल्य मिले। खुले बाजार में बेचने पर 15 फसलों में से 12 के लिए किसानों को अपेक्षाकृत कम वास्तविक लाभकारी मूल्य प्राप्त हुआ।
व्यापारियों का बाजार हिस्सेदारी पर कब्जा
2013 से 2019 के मध्य कई सारे बदलाव देखने को मिले लेकिन रिपोर्ट से एक दिलचस्प बात निकलकर सामने आई है। निजी अनियंत्रित बाजारों में स्थानीय व्यापारियों ने कृषि उत्पाद की खरीद में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई जबकि इन 6 वर्षों के दौरान एपीएमसी की बाजार हिस्सेदारी घट गई।
उदाहरण के लिए सर्वेक्षण के 2013 संस्करण के मुताबिक जुलाई-दिसंबर 2012 के दौरान करीब 30 फीसदी धान की बिक्री एपीएमसी में की गई जबकि 2018 की समान अवधि में महज 8 फीसदी धान की बिक्री एमपीएमसी में की गई। दलहन की बात करें तो 2018 में केवल 22 फीसदी अरहर ही एपीएमसी में पहुंचा जबकि 2012 में इसकी मात्रा 66 फीसदी थी। यही बात रबी फसल के लिए भी लागू होती है। किसानों द्वारा एपीएमसी में बेचे जाने वाले गेहूं की मात्रा 2013 के 44 फीसदी के मुकाबले 2019 में घटकर 13 फीसदी रह गई।
