खरीफ की फसल का सीजन समाप्त हो चुका है और कृषि उत्पाद शीघ्र ही राज्य सरकार से विनियमित कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) की मंडियों सहित कृषि बाजारों में पहुंचने शुरू हो जाएंगे।
चार प्रमुख खरीफ फसलों के शुरुआती आंकड़ों से पता चलता है कि बड़े उत्पादक राज्यों में फसल की आवक के पहले हफ्ते में ही थोक मूल्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के स्तर तक गिरावट आ चुकी है। एमएसपी का मकसद खुली बाजार कीमतों के लिए आधार मूल्य तय करना है। उदाहरण के लिए सोयाबीन की बात करें तो इसकी कीमत 3,950 रुपये पर आ चुकी है जो कि एमएसपी के बराबर है। देश में उगाए जाने वाले तिलहनों में सबसे चर्चित सोयाबीन की कीमत सितंबर के शुरुआती हफ्तों में मध्य प्रदेश की बड़ी मंडियों में 10,000 रुपये के करीब पहुंच गई थी। कीमत में यह उछाल ऐसे समय पर थी जब बाजारों में नई पैदावार नहीं आ रही थी। अब नई पैदावार की आवक शुरू होते ही कीमत घटकर एमएसपी के स्तर पर आ चुकी है।
मध्य प्रदेश में सक्रिय एक प्रमुख किसान समूह किसान स्वराज संगठन के महासचिव भगवान मीणा ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘कल मध्य प्रदेश के हरदा जिले के किसानों ने सोयाबीन की कीमतों में अचानक से तेज गिरावट के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए चक्का जाम किया था। यह जिला राज्य के सायोबीन उत्पादक प्रमुख जिलों में से एक है और राज्य के कृषि मंत्री का गृह शहर भी है। नुकसान केवल इतना भर नहीं है। सितंबर महीने में अप्रत्याशित रूप से काफी दिनों तक हुई बारिश ने लघु अवधि की उड़द और मूंग की किस्मों के बड़े रकबे को चौपट कर दिया।’
चावल को लेकर मीणा ने कहा कि राज्य में इसकी पैदावार की स्थिति अनिश्चित नजर आ रही है। इसकी वजह है कि अगस्त महीने में लंबे वक्त सूखे की स्थिति रही जिसके बाद सितंबर में भारी बाशि हुई जिससे पैदावार पर असर पड़ सकता है। चालू खरीफ सीजन में राज्य में 11.2 लाख हेक्टेयर अधिक धान की बुआई की गई है।
आंकड़ों से पता चलता है कि पूरे महीने मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में मंडियों में दलहनों की बिक्री एमएसपी के करीब हुई है और फसलों की नई आवक से कीमत एमएसपी से नीचे चली गई है। शुरुआती हफ्तों में मूंगफली की कीमत एमएसपी से अधिक मिल रही थी लेकिन सितंबर के अंतिम हफ्ते में गुजरात की मंडियों में दाम गिर गए जबकि इसकी बड़ी खेप अब तक आनी शुरू भी नहीं हुई थी। ध्यान देने वाली एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आपूर्ति की प्रचुरता अब तक नहीं आई है। अक्टूबर से दिसंबर की अवधि में आपूर्ति चरम पर होगी।
देश में इस गर्मी के कृषि सीजन में तिलहनों और दलहनों के बुआई रकबे में कमी देखी गई।
कृषि जिलों में कम बारिश की वजह से मोटे अनाज और कपास की बुआई में भी कमी आई है। लिहाजा बाजार इस विपणन सीजन में उत्पादन और आवक में कुछ कमी का अनुमान लगा रहे हैं।
लेकिन हाल में विशेष तौर पर महाराष्ट्र में हुई भारी बारिश ने फसल पैदावार की चिंता को और अधिक बढ़ा दिया है। बाजार पर्यवेक्षकों का मानना है कि तिलहन उत्पादन में उम्मीद से और अधिक कमी आएगी। बिजनेस स्टैंडर्ड ने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात की मंडियों में चार फसलों सोयाबीन, तूर, उड़द और मूंगफली की थोक कीमतों का आकलन किया है जिससे कि सितंबर में किसानों को मिल रहे थोक मूल्य का पता लगाया जा सके।
तिलहन- सोयाबीन और मूंगफली
धीरे धीरे आवक बढऩे के साथ सोयाबीन की कीमतें मध्य प्रदेश के इंदौर एपीएमसी में घटने लगी है। इसकी कीमत सितंबर के दूसरे हफ्ते में जहां 8,000 रुपये से 9,000 रुपये प्रति क्विंटल थी वह तीसरे हफ्ते के अंत तक 4,000 रुपये से 5,000 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई थी।
इसी तरह से गुजरात के राजकोट में भी मूंगफली की कीमत गिरकर एमएसपी के स्तर पर पहुंच चुकी है। राज्य में यहीं पर सबसे अधिक मूंगफली की आवक होती है। जबकि सितंबर के अंतिम हफ्ते में हलवाड़ और महुवा (स्टेशन रोड) मंडियों में कीमतें एमएसपी से नीचे चली गई हैं।
दलहन- तूर और उड़द
तूर या अरहर का थोकमूल्य महाराष्ट्र के वाशिम जिले की करांजा मंडी में एमएसपी के आसपास रही थी। लेकिन आवक बढऩे के साथ ही कीमतें एमएसपी से थोड़ा नीचे चली गई। महाराष्ट्र के अन्य प्रमुख मंडियों में भी हालात इससे अलग नहीं हैं।
हिंगणघाट और खामगांव मंडियों में आवक शुरू होने से काफी पहले से कीमतें 6,000 रुपये के नीचे चली गई हैं।
