इस साल निर्यातकों और मिल मालिकों ने ग्वारसीड का भंडारण शुरू कर दिया है। इसकी वजह यह है कि ग्वारसीड की विदेशों से आने वाली मांग में अचानक बहुत ज्यादा कमी आई है।
इसी स्थिति को भांपते हुए निर्यातकों और मिल मालिकों ने इसका भंडारण शुरू कर दिया है। पिछले तीन सालों के दौरान इस मौसम में सबसे ज्यादा ग्वारसीड की मांग में कमी आई है। कारोबारी सूत्रों और जिंस विश्लेषकों की मानें तो ग्वारसीड से जुड़े कारोबारियों की कोशिश है कि बाद में मांग बढ़ने पर इस वक्त के घाटे की भरपाई कर लेंगे।
घरेलू ग्वारसीड के निर्यात के लिए सबसे बड़ा बाजार यूरोप, अमेरिका और चीन है। अभी तक निर्यात के लिए बहुत कम पूछताछ हो रही है। निर्यात बाजार में अस्थिरता का असर बड़े पैमाने पर पड़ता है। इसकी वजह यह है कि घरेलू ग्वारसीड का 80 फीसदी विदेशों में भेजा जाता है।
इस साल कम निर्यात के संकेत मिल रहे हैं। घरेलू बाजार में उत्पादन के पूरे हिस्से की खपत होना भी बहुत मुश्किल है। इसका नतीजा यह होगा कि कीमतों में गिरावट आएगी। बीकानेर के ग्वारसीड कारोबारी नवरतन डागा का कहना है, ‘इस वक्त बाजार में बहुत ज्यादा गतिविधियां देखने को नहीं मिल रही हैं।
विदेशी बाजारों से भी उतनी मांग नहीं आ रही है।’ एंजेल कमोडिटीज के एक रिर्पोट की मानें तो वर्ष 2008-09 में वैश्विक आर्थिक मंदी की वजह से ग्वारगम के निर्यात में बड़ी तेजी से कमी आई है। इसी वजह से निर्यातकों और मिल मालिकों ने इस जिंस का भंडारण करना शुरू कर दिया है।
पिछले साल दिसंबर में ग्वारसीड की कटाई का काम पूरा हुआ। ग्वारसीड के कुल उत्पादन का 65 फीसदी बाजार में भी आया। कुछ रिपोर्टों के मुताबिक इस फसल का 35 फीसदी स्टॉकिस्टों ने रख लिया गया है। बाजार में कीमतें घटने की वजज से इसकी आपूर्ति कम की जा रही है।
एग्रीवॉच कमोडिटीज के शोध विशेषज्ञ श्रीराम अय्यर का कहना है, ‘कारोबारियों द्वारा ग्वारसीड के भंडारण की दूसरी वजह भी है। दरअसल कारोबारियों क ा अनुमान है कि अगले मौसम में कम उत्पादन हो सकता है और किसान ग्वारसीड के बजाय कॉटन, चना और सोयाबीन जैसी फसलों पर अपना ध्यान दे सकते हैं।’
बुधवार को बीकानेर और जोधपुर में ग्वारसीड का हाजिर भाव क्रमश: 1600 रुपये और 1630 रुपये क्विंटल रहा।
