महंगाई को काबू में करने के लिए दाल के निर्यात पर पाबंदी लगाने और मक्के के आयात पर उत्पाद शुल्क घटाने के सरकार के फैसले पर विशेषज्ञों और कृषि आधारित उद्योगपतियों ने नाराजगी जताई है।
हालांकि इसकामकसद बढ़ती महंगाई पर काबू पाना है। उनका कहना है कि ये कदम बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने में कामयाब नहीं होंगे। इसकेलिए सरकार को कुछ बुनियादी मुद्दों को सही तरीकेसे निपटना होगा। देश में होने वाले कुल खपत की तुलना दाल का उत्पादन कम होता है। नतीजतन हर साल करीब 20 लाख टन दाल विदेशों से मसलन कनाडा, तंजानिया, म्यांमार और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से मंगाना पड़ता है।
कानपुर स्थित दाल रिसर्च इंस्टिटयूट के नरेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार के इस कदम से दाल की कीमतों पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला। इसके लिए सरकार को दलहन की बुआई के समय न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान करना चाहिए ताकि किसान इसकी बुआई के लिए न सिर्फ प्रोत्साहित बल्कि इससे घरेलू पैदावार में भी इजाफा हो। साथ ही किसानों केसामने पैदा होने वाले दूसरे खतरों से निपटने के लिए भी सरकार को कदम उठाना चाहिए।
पिछले कई साल से दलहन की पैदावार 150 लाख टन पर स्थिर है। मध्य प्रदेश दाल उद्योग महासंघ के चेयरमैन सुरेश अग्रवाल ने कहा कि पिछले डेढ़ दशक से सरकार इन समस्याओं को नजरअंदाज करती आ रही है यानी दलहन की पैदावार की बाबत समस्याओं को सुलझाने में नाकाम रही है। जब तक चना, तुअर और मूंग दाल का उत्पादन नहीं बढ़ाया जाएगा तो समस्याएं बरकरार रहेंगी क्योंकि देश में इसकी खपत बढ़ती जा रही है।
चने की पैदावार के ताजा अनुमान के मुताबिक इस साल इसकी पैदावार 48 लाख टन की रहेगी जबकि पहले अनुमान 58 लाख टन का लगाया गया था। हाल में तमिलनाडु और कर्नाटक में हुई बारिश ने फसल को अच्छा खासा नुकसान पहुंचाया है। अग्रवाल ने कहा कि सिंचाई की अच्छी व्यवस्था, बिजली की उपलब्धता, अच्छी क्वॉलिटी के बीज और खाद आदि को सुविधा प्राथमिकता के आधार पर मुहैया कराया जाना चाहिए।
भारत मक्के का आयात नहीं करता, लेकिन वर्तमान सीजन में अच्छी पैदावार के चलते इसका निर्यात बढ़ रहा है और इसका आंकड़ा 15 से 20 लाख टन रहने का अनुमान है। अहमदाबाद स्थित गुजरात अंबुजा एक्सपोट्र्स के चेयरमैन व मैनेजिंग डायरेक्टर विजय गुप्ता ने कहा कि घरेलू बाजार के मुकाबले अंतरराष्ट्रीय बाजार में मक्के की कीमत ऊंची है।
ऐसे समय में अगर मक्के का आयात किया गया तो यह यहां आकर करीब एक हजार रुपये प्रति क्विंटल का पड़ेगा क्योंकि वहां इसकी कीमत करीब 800 रुपये प्रति क्विंटल है।
मुंबई स्थित सहयाद्री स्टार्च के मैनेजिंग डायरेक्टर विशाल मजीठिया ने कहा – ड्यूटी में कटौती के बावजूद मक्के का आयात फायदे का सौदा नहीं है। यूएस ग्रेन काउंसिल में भारतीय प्रतिनिधि अमित सचदेव ने कहा कि मक्के के आयात को डयूटी फ्री किए जाने का कोई असर नहीं पड़ने वाला क्योंकि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों में कोई समानता नहीं है।