खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें अभी चिंता का कारण बनी रहेगी क्योंकि एक मार्च को समाप्त सप्ताह की जारी महंगाई की दर 5.11 फीसदी पर पहुंच गई है।
रोजाना इस्तेमाल की चीजें मसलन खाद्य तेल, दाल, चावल और चीनी की कीमतें बढ़ रही हैं और आम लोगों पर अच्छा खासा प्रभाव डाल रही हैं। जब रबी की फसल की कटाई अप्रैल में शुरू होगी, हो सकता है तब दाल, खाद्य तेल और गेहूं की कीमत आम लोगों को थोड़ी बहुत राहत दे दे।
लेकिन संकट का दौर अभी खत्म नहीं होने वाला। दाल और खाद्य तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का सिलसिला जारी रहेगा क्योंकि इन चीजों की कम पैदावार का अनुमान है। एनसीएईआर के सीनियर फेलो शशांक भिडे के मुताबिक, महंगाई की मुख्य चिंता खाने पीने की चीजों की बढ़ रही कीमतें हैं और यह स्थिति अप्रैल मध्य तक बनी रहेगी। इसके बाद बाजार में रबी फसल की आवक शुरू होगी और फिर इससे थोड़ी बहुत राहत मिलेगी क्योंकि कीमतें गिरेंगी।
पिछले एक साल के दौरान खाद्य तेल की कीमतों में 35-40 फीसदी का उछाल आया है और आने वाले समय में भी इसकी कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि घरेलू उत्पादन घटने के आसार हैं। पिछले महीने कृषि मंत्रालय केजारी आंकड़ों के मुताबिक, रबी ऑयलसीड का उत्पादन 95.9 लाख टन रहने का अनुमान है जो पिछले साल के मुकाबले 6.7 फीसदी कम है।
भारत अपनी कुल जरूरत का 45 फीसदी खाद्य तेल का आयात करता है, ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ रही इसकी कीमतें अच्छे संकेत तो नहीं माने जा सकते।विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा पिछले एक साल के दौरान 14 लाख टन दाल के आयात के बावजूद इसकी कीमतें बढ़ रही हैं। उदाहरण के तौर पर अगर चने की बात करें तो जनवरी से अब तक इसमें 10 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
रबी सीजन में दाल का उत्पादन 85.7 लाख टन रहने का अनुमान है जदो पिछले साल के मुकाबले 8.8 फीसदी कम है। हाल के समय में गेहूं की कीमतें स्थिर हैं क्योंकि पिछले साल गेहूं की अच्छी पैदावार व पर्याप्त मात्रा में सरकारी खरीदारी हुई है। साथ ही बिना शुल्क के आयात और निर्यात पर पाबंदी ने भी गेहूं की कीमतों को स्थिर रखने में मदद की है।
इस साल गेहूं की अनुमानित पैदावार 741.8 लाख टन की रहेगी, जो पिछले साल के मुकाबले 1.3 फीसदी कम है। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी. के. जोशी ने कहा कि अगर गेहूं की पैदावार अच्छी नहीं हुई तो फिर महंगाई पर इसका असर पड़ेगा।