गन्ना उत्पादन से जुड़े किसानों व चीनी उद्योग को राहत देने की सरकारी कवायद असफल होती नजर आ रही है।
गत वित्त वर्ष के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने गन्ने के किसान व चीनी उद्योग की सहायता के लिए 457 करोड़ रुपये खर्च करने का फैसला किया था। इसके बावजूद बाजार में गन्ने की भरमार है। लिहाजा सरकारी कवायद के बावजूद चालू वित्तीय वर्ष में सरकार की मुश्किलें और बढ़ती नजर आ रही हैं।
गत वर्ष राज्य में गन्ने का बंपर उत्पादन हुआ था। यह उत्पादन 790 लाख टन के आसपास था। इनमें से 33 लाख टन गन्ने की पेराई अब तक नहीं हो पायी है। गन्ने की पेराई का मौसम अब समाप्त होने वाला है। अमूमन गन्ने की पेराई अक्तूबर के पहले सप्ताह से लेकर मार्च के आखिर तक या अप्रैल के पहले सप्ताह तक होती है। हालांकि बीते साल चीनी मिलों ने मई महीने के अंत तक पेराई का काम किया था।
गत वर्ष राज्य सरकार ने गन्ने के किसानों को पेराई से बचे हुए गन्ने के मामले में 132 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया था। इसके अलावा चीनी मिलों को पेराई का मौसम खत्म होने के बाद पेराई करने के लिए कहा गया। इस कारण से चीनी मिलों को सरकार की तरफ से 75 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति करनी पड़ी। साथ ही बचे हुए गन्नों को खरीदने के लिए सरकार ने चीनी को-ऑपरेटिव की मदद ली।
इस मद में सरकार को ट्रांसपोर्ट राहत के नाम पर 30 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। इसके अलावा राज्य सरकार ने निर्यात राहत के नाम पर चीनी को-ऑपरेटिव्स को प्रति टन 1000 रुपये दिए। इस प्रकार से इस मद में सरकार को 220 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े।
इस साल गन्ने का उत्पादन 840 लाख टन के स्तर पर है। दूसरी ओर मानसून के कारण चीनी मिलों ने निर्धारित समय से छह सप्ताह बाद गन्ने की पेराई शुरू की। इस बारे में जानकारी देते हुए महाराष्ट्र स्टेट सुगर को-ऑपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रकाश नायकनवारे ने कहा कि इन कारणों से इस साल उत्पादन और कम होने की उम्मीद है।
हालांकि कई सारी मिलों ने गन्ने की पेराई की निधारित अवधि को बढ़ा दिया है, फिर भी गत साल के मुकाबले 25 लाख टन कम गन्ने की पेराई हो पायी है। उन्होंने बताया कि गत साल 10 अप्रैल त क 670 लाख टन गन्ने की पेराई हुई थी।