केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ‘दवा, चिकित्सा उपकरण और कॉस्मेटिक्स विधेयक-2022’ का मसौदा जारी किया है, जिसमें पहली बार ई-फार्मेसियों को विनियमित करने की दिशा में प्रयास किया जाएगा।
सरकार ने चिकित्सा उपकरणों के संबंध में एक अलग विशेषज्ञ समूह के साथ-साथ राज्य और केंद्र स्तर पर चिकित्सा उपकरणों का परीक्षण करने वाली प्रयोगशालाएं स्थापित करने का भी प्रस्ताव रखा है। यह कदम देश में दवा परीक्षण करने वाली प्रयोगशालाओं के नेटवर्क के समान होगा। इसके अलावा विधेयक में दवाओं और चिकित्सा उपकरणों दोनों के ही मामले में क्लीनिकल परीक्षणों के दौरान मौत अथवा चोट के संबंध में मुआवजे का भुगतान करने में विफल रहने पर कारावास सहित जुर्माने का भी प्रावधान है।
सरकार ने अगले 45 दिनों में इस विधेयक के मसौदे पर टिप्पणियां, आपत्तियां और सुझाव मांगे हैं। ई-फार्मा उद्योग को इस क्षेत्र के व्यापक विनियमन की उम्मीद है। ई-फार्मेसी कंपनियों का कहना है कि इस क्षेत्र के लिए व्यापक दिशा-निर्देशों की जरूरत है। एक प्रमुख ऑनलाइन फार्मेसी के मुख्य कार्याधिकारी कहा कि वर्तमान में कारोबार पूरी तरह से वैध है, क्योंकि यह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम तथा दवा और कॉस्मेटिक्स अधिनियम के अंतर्गत आता है। हालांकि निवेशक और उपभोक्ता दोनों का ही भरोसा बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र में विनियमन की आवश्यकता है।
ई-फार्मेसियों के लिए मसौदा नियम वर्ष 2019 में जारी किए गए थे। अधिकारी ने कहा कि ई-फार्मेसी कंपनियों के एक समूह के रूप में हम पिछले कुछ सालों से विनियामकों और मंत्रालयों के साथ धैर्यपूर्वक काम करते रहे हैं। हमने हितधारकों की बहुत-सी चर्चाओं में हिस्सा लिया है। हालांकि ई-फार्मेसियों पर मसौदे की अधिसूचना वर्ष 2019 में जारी की गई थी, लेकिन इस क्षेत्र में कारोबार सुगमता के संबंध में नीतिगत और प्रक्रियात्मक मसले समस्याएं पैदा करते रहे।
उन्होंने कहा कि दवा, चिकित्सा उपकरण और कॉस्मेटिक्स विधेयक-2022 का मसौदा सही दिशा में उठाया गया कदम है।
ई-फार्मेसियों का मानना है कि इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में नवाचार के फलने-फूलने के लिए एक सरल, स्पष्ट विनियामकीय मार्ग जरूरी है।
सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑनलाइन चैनल ने वित्त वर्ष 2015 से 21 के दौरान 5,600 करोड़ रुपये के राजस्व में 96 प्रतिशत की सीएजीआर (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) के साथ फार्मेसी बाजार की तीन प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल की है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि ई-फार्मेसी खंड ने वित्त वर्ष 21 के दौरान राजस्व में 47 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की है। इसे कोविड से संबंधित लॉकडाउन और खरीदारों की बाहर नहीं निकलने की इच्छा से बढ़ावा मिला।
चिकित्सा उपकरणों की अलग परिभाषा
1940 के पिछले अधिनियम, जो चिकित्सा उपकरणों को दवाओं की श्रेणी के रूप में विनियमित करता था, के विपरीत विधेयक-2022 के इस मसौदे में चिकित्सा उपकरणों के लिए एक अलग परिभाषा है।
इन्हें डायग्नोस्टिक उपकरण, इसके सॉफ्टवेयर, इम्प्लांट और लाइफ-सपोर्ट आदि के दायरे में लाया गया है। इस विधेयक में मौजूदा औषधि प्रौद्योगिकी सलाहकार बोर्ड की तर्ज पर ‘चिकित्सा उपकरण तकनीकी सलाहकार बोर्ड’ या एमडीटीएबी के निर्माण के प्रावधान की दिशा में भी कदम उठाया गया है।
देश का चिकित्सा उपकरण उद्योग भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक संघ (एफएसएसएआई) की तरह ही चिकित्सा उपकरणों के विनियमन के लिए एक अलग वैधानिक निकाय की मांग करता आ रहा है। एफएसएसएआई स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है। उद्योग के एक सूत्र ने अतीत में बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा था कि भोजन दवाओं से अलग होता है। और इसलिए एफएसएसएआई का निर्माण इसकी निगरानी के लिए किया गया था। इसी तरह, नीति आयोग की भी राय है कि चिकित्सा उपकरणों के लिए भी एक अलग निकाय निर्मित करने की जरूरत है।