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  कमोडिटी  मौसम की मार और चेप के वार से आम होगा दुश्वार
कमोडिटी

मौसम की मार और चेप के वार से आम होगा दुश्वार

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता | नई दिल्ली—April 22, 2009 10:00 AM IST
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आम की फसल पर मौसम की मार और चेप नाम की बीमारी का असर उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके और रुहेलखंड में नजर आ रहा है।
आम उत्पादन के  लिहाज से बेहद अहम इस इलाके  में इस साल आम के उत्पादन में भारी गिरावट आने जा रही है। आम के शौकीनों को इसके जायके के लिए तो तरसना ही पड़ेगा,  उत्पादन कम होने से आम उत्पादकों को भारी पैमाने पर नुकसान की आशंका है।
इस पट्टी के आम उत्पादकों के बीच इस साल चेप नाम की एक खतरनाक बीमारी दहशत फैला रही है, जिसकी वजह से आम के पेड़ों पर बौर के छत्ते के छत्ते नष्ट होते जा रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा के एक आम उत्पादक मो. आफताब कहते हैं, ‘यह बीमारी पिछले सात-आठ साल से इस इलाके में आम को नुकसान पहुंचाती आ रही है लेकिन इस साल तो इसके कहर से हमारी कमर टूटने वाली है।’
आफताब की तरह ही रामपुर के एक आम उत्पादक अफरोज अहमद भी चेप के कहर से खौफजदा हैं। वह कहते हैं, ‘मान लीजिए किसी पेड़ पर 5 क्विंटल आम आने हैं लेकिन अगर उस पर चेप लग जाए तो उस पेड़ पर 50 किलो आम भी आ जाए तो गनीमत समझिए।’
अमरोहा और रामपुर के अलावा मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, सहारनपुर जैसे जिलों में बड़े पैमाने पर आम उत्पादन होता है और इन जिलों का कोई गांव ऐसा नहीं होगा, जहां पर 2 या 3 आम के बाग न हों। यहां पैदा होने वाले आम की किस्में भी बेहतरीन हैं। जिनमें दशहरी, बंबइया, बनारसी और चौसा प्रमुख हैं। लंगड़ा और चौसा तो केवल इसी इलाके में पैदा होते हैं।
उत्तर प्रदेश आम उत्पादक संघ के अध्यक्ष शिवचरण सिंह का मानना है कि इस साल पहले से ही आम उत्पादकों के सामने कई मुश्किलें थीं और बची खुची कसर इस बीमारी ने पूरी कर दी है। वह कहते हैं,’ अगर अनुमान का 10 से 15 फीसदी भी उत्पादन हो जाए तो हम ऊपर वाले का शुक्र मनाएंगे।’
बचाव का तरीका
आम उत्पादक इस बीमारी से निपटने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए एंडोसल्फाइड, मोनोसल्फाइड और ठाइडोन जैसे कीटनाशकों का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। लेकिन इस बीमारी का प्रकोप इतना है कि उससे भी कुछ फायदा होता नहीं दिख रहा है।
सहारनपुर के रामपुर मनिहारन कस्बे के एक आम उत्पादक यामीन भाई कहते हैं, ‘अगर बौर पर शुरू से बीमारी लग जाए ऐसे में 10 या 12 दिन की बौरी पर कीटनाशक का इस्तेमाल भी नहीं किया जा सकता। इससे बौर के झुलसने का खतरा बना रहता है।’
वैसे अप्रैल का महीना आम के लिए सबसे ज्यादा संवेदनशील माना जाता है और इस दौरान देखभाल पर आम उत्पादकों का खर्चा भी बढ़ जाता है। ऊपर से इन महंगे कीटनाशकों ने भी आम उत्पादकों की लागत में इजाफा ही कर दिया है।
कारोबार
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थानीय बाजार के अलावा दिल्ली को आम की बड़े पैमाने पर आपूर्ति होती है। ज्यादातर आम दिल्ली के जरिये ही देश के दूसरे हिस्सों में जाता है। इस इलाके से आम का सालाना कारोबार लगभग 3,500 से 4,000 करोड़ रुपये का है।
दिल्ली में आम की आढ़त चलाने वाले संजय अग्रवाल कहते हैं, ‘आम का उत्पादन कम होने से इस सीजन में धंधा मंदा रहने वाला है और हम दूसरी चीजों पर ध्यान लगा रहे हैं।’
नुकसान
अनुमान का केवल 10 से 15 फीसदी उत्पादन की आशंका से आम उत्पादकों में खासा खौफ है। मुरादाबाद में तीन पीढ़ियों से आम के कारोबार से जुड़े मो. इस्लाम कहते हैं, ‘मैंने चार बगीचों में इस सीजन में 20 लाख रुपये लगाए हैं और मुझे 15 लाख रुपये ही वापस आते दिख रहे हैं। इस लिहाज से मुझे इस सीजन में कम से कम 5 लाख रुपये का नुकसान होने जा रहा है।’ 
कीमतें बढ़ने से भी उत्पादकों की मुश्कि लें हल होती नहीं दिख रही हैं, क्योंकि आम उत्पादक आढ़ती से अग्रिम नकद सौदे के तहत कम दामों पर ही  फसल का सौदा कर देते हैं। आम उत्पादक सरकार से राहत पैकेज की मांग कर रहे हैं। 
राज्य के कृषि मंत्री चौ. लक्ष्मीनारायण बिजनेस स्टैंडर्ड से कहते हैं, ‘सरकार इस बीमारी के बारे में विशेषज्ञों से राय मशविरा कर रही है, इसके बाद ही कोई फैसला किया जाएगा।’

climate affection and insects attack makes problems for mango
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