वित्त वर्ष 2007-08 में भारतीय रिफायनरी का क्रूड ऑयल बास्केट प्राइस औसतन 27 फीसदी बढ़ा यानी एक साल पहले के 62.46 डॉलर प्रति बैरल के मुकाबले 2007-08 में यह 79.25 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 14 मार्च को यह 103.8 डॉलर प्रति बैरल के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था और पिछले वित्त वर्ष के आखिरी दो महीनों में यह 90 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर रहा।
पश्चिम एशिया में तनाव और दुनिया की दूसरी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर में आई कमजोरी के चलते तेल में निवेश बढ़ा और इसके नतीजे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चा तेल 100 डॉलर से ऊपर पहुंच गया। अब तक उपलब्ध अंतिम आंकड़ों के मुताबिक, सोमवार को भारतीय रिफायनरी का बास्केट प्राइस 99.45 डॉलर प्रति बैरल पर था। भारत ओमान-दुबई से हाई सल्फर व ब्रेंट यानी लो सल्फर युक्त कच्चे तेल का आयात 61.4:38.6 के अनुपात में करता है।
मार्च महीने में बास्केट प्राइस का औसत 99.76 डॉलर प्रति बैरल पर था जबकि फरवरी में 92.37 डॉलर प्रति बैरल। इस तरह फरवरी केमुकाबले मार्च में 8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। 31 मार्च को समाप्त तिमाही में बास्केट प्राइस औसतन 93.77 डॉलर प्रति बैरल पर रही जो दिसंबर में समाप्त तिमाही के 85.09 डॉलर प्रति बैरल के मुकाबले 10.2 फीसदी ज्यादा थी।
भारत की सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियां 400 करोड़ रुपये का नुकसान उठा रही हैं क्योंकि उन्हें अंतरराष्ट्रीय कीमत के अनुसार पेट्रोल, डीजल, एलपीजी और केरोसिन की कीमत बढ़ाने की इजाजत नहीं है। इस वजह से इन कंपनियों मसलन आईओसी, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम के वर्किंग कैपिटल पर खासा असर पड़ा है।