कोयले से चलने वाले 25 साल से ज्यादा पुराने बिजली संयंत्र बंद करने से 37,750 करोड़ रुपये बच सकते हैं। काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट ऐंड वाटर- सेंटर फॉर एनर्जी फाइनैंस (सीईईडब्ल्यू-सीईएफ) के एक अध्ययन में यह सामने आया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की कुल 300 गीगावॉट स्थापित क्षमता में से 35 गीगावॉट कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को प्राथमिकता के आधार पर बंद किया जा सकता है।
इसमें कहा गया है, ‘ऐसा करने से अगले 5 साल के दौरान हर साल 7,550 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। यह बचत सालाना क्षमता या नियत शुल्क के भुगतान से बचने से होगी, खासकर परिचालन व रखरखाव की लागत में होगी। इससे कुल बचत 37,750 करोड़ रुपये हो जाएगी।’
सीईआरई ने अपने शुल्क नियमन-2019 में डिस्कॉम को 25 साल से पुराने संयंत्रों से बिजली खरीद को लेकर ‘इनकार के पहले अधिकार’ की अनुमति दे दी है।
इसके बाद पिछले साल दिसंबर में बिजली मंत्रालय ने एक अधिसूचना में बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को विकल्प दिया था कि 25 साल पूरे कर चुके संयंत्रों के साथ बिजली खरीद समझौता बनाए रखने या उससे बाहर निकलने का उन्हें अधिकार है। इसका लाभ उठाते हुए डिस्कॉम पूरे पीपीए से निकलने में सहज हुईं, न कि सिर्फ एक हिस्से से अलग होने में।
इस महीने की शुरुआत में सीईआरसी ने बीएसईएस को एनटीपीसी की दादरी-1 बिजली संयंत्र से बिजली आपूर्ति की अपनी हिस्सेदारी खत्म करने के लिए बिजली मंत्रालय से संपर्क की अनुमति दे दी थी। इस संयंत्र से औसतन 6.50 रुपये प्रति यूनिट के भाव बिजली आपूर्ति होती है, जो दिल्ली में सबसे महंगी बिजली आपूर्ति में से एक है।
बीएसईएस 6 और ताप बिजली संयंत्रों ऊंचाहार, फरक्का, औरैया गैस, अंता, कहलगांव और दादरी गैस पावर स्टेशनों से पीपीए रद्द करने की प्रक्रिया में है। ये सभी संयंत्र सरकारी बिजली उत्पादन कंपनी एनटीपीसी लिमिटेड के हैं।
पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश ने भी खासकर गैस आधारित बिजली संयंत्रों से हुए पीपीए से बाहर निकलने के लिए आवेदन किया है। इन राज्यों का दावा है कि पीपीए की अवधि 25 साल हो चुकी है और इन इकाइयों से बिजली महंगी मिलती है, जो 5 से 7 रुपये प्रति यूनिट है। गैस आधारित इकाइयों को घरेलू ईंधन की आपूर्ति कम है और बिजली की औसत कीमत ज्यादा है।
सीईईडब्ल्यू-सीईएफ के प्रोग्राम लीड और अध्ययन के मुख्य लेखक वैभव प्रताप सिंह ने कहा, ‘इन संयंत्रों के डिकमिशनिंग के लिए अनुमानित लागत अहम है। सभी हिस्सेदारों के लिए उचित व्यवस्था बनाई जानी चाहिए जिसमें कोयला खदानें व रेलवे शामिल हैं।’