करीब 18 महीने बाद केंद्र सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर लिए जा रहे भारी भरकम कर में थोड़ी कटौती की है। पेट्रोल पर 5 रुपये लीटर और डीजल पर 10 रुपये लीटर कर घटाने से लाखों ग्राहकों को राहत मिलेगी। लेकिन कर में किसी भी कटौती से सरकार का खजाना प्रभावित होता है। ऐसे में यह सवाल है कि राजस्व पर कितना असर पड़ेगा? बिजनेस स्टैंडर्ड के विश्लेषण से पता चलता है कि केंद्र सरकार को इस फैसले से 35,000 करोड़ रुपये राजस्व गंवाना पड़ेगा। इससे लगता है कि कोषागार को बड़ा नुकसान होगा, लेकिन यह राशि सीधे ग्राहकों की जेब में जाएगी और वे वित्त वर्ष के शेष महीनों में इसका इस्तेमाल अन्य खर्च वहन करने में कर सकेंगे।
दूसरे शब्दों में कहें तो यह राशि सकल घरेलू उत्पाद का 1.5 प्रतिशत है और यह 5 महीनों तक भारतीयों के निजी खपत के लिए उपलब्ध होगी। यह खर्च बढ़ाने के लिए किसी प्रोत्साहन पैकेज की तुलना में कम नहीं है।
इसमें केंद्र सरकार के लिए भी चिंता करने जैसी कोई बात नहीं है क्योंकि व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट आय कर के रूप में तेजी से राजस्व आ रहा है।
वित्त वर्ष 2021-22 के पहले 6 महीने में सालाना प्राप्तियों का 55 प्रतिशत केंद्र सरकार ने हासिल कर लिया है, जबकि पहली छमाही में संग्रह का औसत अमूमन कुल लक्ष्य का 40 प्रतिशत होता है।
इसके अलावा वित्त वर्ष 2020 की तुलना में वृद्धि 31 प्रतिशत रही है, जो सामान्य समय में औसत सालाना राजस्व वृद्धि 14 प्रतिशत रहती है।
अगर हम केंद्र के सिर्फ कर राजस्व की बात करें तो स्थिति मजबूत है। वित्त वर्ष के लक्ष्य की तुलना में शुरुआती 6 महीने में 60 प्रतिशत राजस्व लक्ष्य हासिल किया जा चुका है।
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि केंद्र सरकार इस साल राजस्व लक्ष्य पार कर जाएगी। इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने उम्मीद जताई है कि बजट अनुमान की तुलना में केंद्र के खजाने में 1.4 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त आएंगे। साथ ही भारतीय रिजर्व बैंक से 50,000 करोड़ रुपये उम्मीद से अतिरिक्त लाभांश आएगा। अगर ईंधन पर कर में कटौती से खजाने को 35,000 करोड़ रुपये की चपत लगती है, इसके बावजूद राजस्व की स्थिति मजबूत बनी रहेगी।
कुछ रिसर्च एजेंसियां ज्यादा राजस्व हानि का अनुमान लगा रही हैं। उदाहरण के लिए नोमुरा का अनुमान है कि राजस्व नुकसान वित्त वर्ष 22 के शेष हिस्से में 45,000 करोड़ रुपये रहेगा। इसने एक नोट में कहा है, ‘हम राजस्व घाटे का अनुमान जीडीपी का 6.5 प्रतिशत (पहले 6.2 प्रतिशत) कर रहे हैं, जबकि बजट लक्ष्य 6.8 प्रतिशत का है।’
ईंधन के दाम में कटौती से खुदरा स्तर पर महंगाई में भी कमी आएगी।
यही वजह है कि खजाने को संभावित नुकसान की गणना की गई। केंद्र सरकार ने पुरानी (बढ़ी) दरों पर इस साल 7 महीने राजस्व कमाया है। अगर पहले के वर्षों में खपत के आंकड़े देखें तो पेट्रोल व डीजल की खपत पिछले 5 महीने में सालाना खपत का 40-42 प्रतिशत रही है।
केंद्रीय बजट 2021-22 के मुताबिक सरकार को उम्मीद है कि इस साल उसे पुरानी दर के हिसाब से पेट्रोल-डीजल पर 3.2 लाख करोड़ रुपये कर मिलेगा। पिछले 5 महीने में संभावित राजस्व की गणना उपरोक्त उल्लिखित हिस्से के रूप में की गई है।
ईंधन के रूप में इस्तेमाल होने वाले दो प्रमुख ईंधनों में पेट्रोल की सालाना खुदरा खपत में हिस्सेदारी 30 प्रतिशत के करीब है। इस हिस्सेदारी के मुताबिक अनुमानित राजस्व हानि की गणना की गई है। महामारी आने के बाद केंद्र व राज्यों ने सिर्फ पेट्रोल व डीजल पर कर लगाकर 7 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कर जुटाए हैं।
केंद्र सरकार द्वारा ईंधन के दाम में कटौती के बाद संभव है कि कुछ राज्य भी इसका अनुपालन करते हुए बिक्री कर (या मूल्यवर्धित कर) कम करें। तमिलनाडु जैसे राज्यों ने पहले ही इस तरह के कदम उठाए हैं। लेकिन इस बात की भी संभावना है कि राज्य यथास्थिति बरकरार रखें। केंद्र सरकार उपकर से भारी भरकम कर वसूलती है, राज्यों के पास धन जुटाने के कम साधन हैं। ऐसे में राज्यों की 3 साल तक ईंधन से सालाना कमाई 2 लाख करोड़ रुपये बनी रह सकती है।
