कोयले के आयात के नियम लगातार बदलने से कुल 108 गीगावाट क्षमता वाली राज्य बिजली उत्पादन कंपनियां (जेनको) और स्वतंत्र बिजली उत्पादक (आईपीपी) परेशान हो गए हैं। एक तरफ केंद्र सरकार आयातित कोयले के इस्तेमाल के लिए उन पर दबाव डाल रही है और दूसरी तरफ राज्य सरकारें आयातित कोयले और उससे बनी महंगी बिजली के भुगतान के लिए अनिच्छुक हैं।
केंद्र सरकार ने 2 सप्ताह पहले सभी सरकारी और निजी बिजली उत्पादन कंपनियों को 10 प्रतिशत आयातित कोयले के मिश्रण के लिए कोयला आयात करने को कहा था और अब केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने उनसे निविदा रोकने के लिए कहा है। केंद्र ने अब कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) को सरकारी व निजी बिजली उत्पादन कंपनियों के लिए कोयला आयात करने को कहा है।
कुछ राज्यों ने कहा कि वे आयातित कोयले के कारण बिजली के बढ़े दाम का भुगतान नहीं करेंगे, जिसके बाद दिशानिर्देशों में बदलाव किया गया है। उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र ने इस मामले में पहले आवाज उठाई है। महाराष्ट्र की आईपीपी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि महाराष्ट्र बिजली नियामक आयोग (एमईआरसी) ने हाल में उनके एक आवेदन की सुनवाई में पाया कि ईंधन की आपूर्ति सुनिश्चित करना आईपीपी का दायित्व है और अगर वह कोयले का आयात करती हैं तो इससे बिजली के बढ़े दाम के भुगतान की जवाबदेही राज्य सरकार की नहीं है। अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि डिस्कॉम द्वारा अग्रिम भुगतान के आवेदन पर एमईआरसी ने कहा कि उत्पादन कंपनियां अनुमान के आधार पर कोयले का आयात नहीं कर सकती हैं।
उत्तर प्रदेश बिजली निगम (यूपीपीसीएल) ने राज्य की आईपीपी- रिलायंस पावर, बजाज हिंदुस्तान, लैंको, प्रयागराज (टाटा पावर) को स्पष्ट आदेश जारी कर कोयला आयात नहीं करने के लिए कहा है। विभाग ने आयातित कोयला महंगा होने को वजह बताई है और कहा है कि आयातित कोयला मिलाने के कारण महंगी हुई बिजली की कीमत का भुगतान राज्य नहीं करेगा।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘यूपीपीसीएल ने राज्य के बिजली उत्पादकों से कहा कि अगर वे कोयले का आयात करती हैं तो उन्हें 10,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त लागत का बोझ सहना पड़ेगा। यहां तक कि उसने आईपीपी से कहा कि अगर उन्होंने कोई निविदा जारी की है तो उसे रद्द कर दें।’ उद्योग के विशेषज्ञों ने कहा कि नकदी के संकट से जूझ रहे डिस्कॉम वाले कुछ अन्य राज्य जैसे पंजाब भी कोयला आयात को लेकर अनिच्छुक हैं।
राज्यों की ओर से मिलने वाली विपरीत प्रतिक्रिया के बाद केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने शनिवार देर रात अपने पिछले दिशानिर्देशों को पलट दिया और कहा कि अब राज्यों के लिए कोल इंडिया कोयले का आयात करेगी।
बिजली मंत्रालय के दिशानिर्देशों को बिजनेस स्टैंडर्ड ने देखा है जिसमें कहा गया है, ‘राज्यों की ओर से मिल रहे सुझावों को देखते हुए बैठक में यह फैसला किया गया है कि कोल इंडिया मिश्रण के लिए कोयले का आयात करेगी और यह सरकार से सरकार के आधार पर होगा।
कोल इंडिया आयातित कोयले की आपूर्ति राज्यों की बिजली उत्पादन कंपनियों व आईपीपी को समग्र रूप से देसी कोयले में आयातित कोयला मिलाकर करेगी।’ इसमें आगे कहा गया है कि राज्य की उत्पादन कंपनियों और आईपीपी ने अगर कोयले के मिश्रण के लिए आयात संबंधी कोई निविदा जारी की है तो उसे रद्द कर सकती हैं।’उद्योग का कहना है कि दिशानिर्देशों में लगातार हो रहे बदलाव और केंद्र व राज्य के बीच तालमेल की कमी की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। एक अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘निजी उत्पादन कंपनियों पर कार्यशील पूंजी को लेकर दबाव है, क्योंकि उनकी ईंधन की लागत बढ़ गई है। देसी कोयले की गुणवत्ता में लगातार गिरावट आ रही है। राज्य भुगतान में देर कर रहे हैं, जिससे बकाया रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।’
जेनको का डिस्कॉम पर बकाया बढ़कर 1 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है, जिसमें बड़ा हिस्सा निजी बिजली उत्पादन कंपनियों का है। बिजली मंत्रालय ने 5 मई को बिजली अधिनियम की धारा 11 के तहत दिशानिर्देश जारी कर कहा था कि बिजजी उत्पादक 10 प्रतिशत मिश्रण के लिए कोयले का आयात करें, जिससे घरेलू आपूर्ति पर दबाव कम किया जा सके। उसके बाद 18 मई को मंत्रालय ने सभी उत्पादकों को चेतावनी दी थी कि वे मिश्रण का मानक 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करें, अगर वे इस महीने के अंत तक कोयले का आयात नहीं करती हैं।सरकारी व निजी जेनको को 10 प्रतिशत मिश्रण के लिए कुल मिलाकर 3.8 से 4 करोड़ टन आयातित कोयले की जरूरत होती है।
केंद्र सरकार की कंपनी एनटीपीसी 2 करोड़ टन कोयले के आयात करने के निविदा जारी करने की प्रक्रिया में है, जिससे आयातित कोयले के मिश्रण का लक्ष्य पूरा किया जा सके।
