इस साल उत्तर प्रदेश में हुई गेहूं की रेकॉर्ड खरीद से इस प्रक्रिया में लगे हुए कमीशन एजेंट अभी तक 5.6 करोड़ रुपये कमा चुके हैं।
उत्तर प्रदेश में अभी तक 28 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हो चुकी है और यह प्रक्रिया अभी जारी है। सरकार ने पहली बार उत्तर प्रदेश में गेहूं के खरीदारी के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,000 रुपये प्रति क्विंटल पर 2.5 प्रतिशत के कमिशन की घोषणा की थी।
इस तरीके से सबसे अधिक लाभ पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों को हुआ है जो गेहूं खरीद की दृष्टि से देश में शीर्ष स्थान पर हैं। उत्तर प्रदेश फूड एंड सिविल सप्लाइज के मुख्य विपणन अधिकारी महबूब हसन खान ने कहा, ‘यूपी में लगभग 80 प्रतिशत गेहूं की खरीदारी इन कमिशन एजेंटों से प्रभावित हुई है।’
उन्होंने कहा, खरीद का यह सिलसिला 30 जून तक चलेगा, तब तक कमिशन एजेंट, जिसमें सोसायटी और सब-एजेंट शामिल हैं, लगभग 6 करोड़ रुपये जुटा लेंगे। खान ने बताया, ‘कमिशन एजेंटों के पेशेवर तरीके और अनुभवों की बदौलत यूपी में इस साल गेहूं की खरीद में बढ़ोतरी हुई है।’ उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष की भांति इस साल कंपनियों द्वारा गेहूं की खरीदारी पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने से भी मदद मिली है।
इस साल की खरीद से वर्ष 2001 के रेकॉर्ड 24.46 लाख मीट्रिक टन का रिकार्ड पहले ही टूट चुका है। इस रेकॉर्ड खरीद से फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) और राज्य की एजेंसियों पर भंडारण क्षमता संबंधी दबाव बढ़ता जा रहा है। एक तरफ जहां एफसीआई और राज्य की एजेंसियों की भंडारण क्षमता लगभग 25 लाख मीट्रिक टन है, वहीं वास्तविक भंडारण क्षमता 18 लाख मीट्रिक टन की है।
प्रचुरता की समस्या से जूझती ये एजेंसियां गेहूं के सुरक्षित भंडारण के सभी विकल्पों का इस्तेमाल कर रही हैं। इस वर्ष खरीद का संयुक्त लक्ष्य 25 लाख मीट्रिक टन का था, जिसमें राज्य की एजेंसियों के लिए 15 लाख मीट्रिक टन और एफसीआई के लिए शुरुआत में 5 लाख टन का लक्ष्य निर्धारित था।
गेहूं के जबर्दस्त उत्पादन को देखते हुए एफसीआई की खरीद का लक्ष्य बढ़ाकर 10 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया। भंडार का कुछ हिस्सा जन वितरण प्रणाली (पीडीएस)और जन कल्याण योजनाओं जैसे मिड-डे मील तथा अंत्योदय के तहत वितरण के लिए नियमित तौर पर भेजा जा रहा है।