कोयले की ढुलाई बढ़ाने व इसकी मांग व आपूर्ति में अंतर खत्म करने के लिए तटीय शिपिंग के माध्यम से आपूर्ति बढ़ाने की केंद्र सरकार की योजना खटाई में पड़ती नजर आ रही है। बिजनेस स्टैंडर्ड को मिले आंकड़ों के मुताबिक खदानों से बंदरगाह तक कोयले की रेल से ढुलाई की महंगी दर और बंदरगाहों पर रेलवे रैक की कमी के कारण प्रमुख बंदरगाहों की क्षमता का इस्तेमाल कम हो पा रहा है।
रेल-समुद्र-रेल (आरएसआर) की तलचर-पारादीप और एनमोर-मेत्तुर सर्किट में कम दूरी की ढुलाई की दरें 2015 से 2018 के बीच 75 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी हैं। इसकी वजह से तेजी से लागत का दबाव बढ़ा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बढ़ती दरें व्यवहार्यता के हिसाब से बड़ा व्यवधान बन गई हैं और इससे कोस्टल शिपिंग पर बुरा असर पड़ रहा है।
अधिकारी ने कहा, ‘समय बीतने के साथ लंबी दूरी की ढुलाई की तुलना में कम दूरी ढुलाई में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।’ उन्होंने कहा कि बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडब्ल्यू) ने रेलवे से कहा है कि वह आरएसआर मोड के लिए अपनी माल ढुलाई में कमी करे।
यह ऐसे समय हो रहा है, जब रेलवे के ऊपर कोयला आपूर्ति को लेकर हाल ही में बहुत ज्यादा दबाव था और आपूर्ति करने के लिए उसे यात्री ट्रेनों की 1000 ट्रिप रद्द करनी पड़ी थी, जिससे कोयले के रैक को प्राथमिकता दी जा सके। कोयला उपयोग वाले तटीय मार्गों को लेकर एक प्रस्ताव पर हाल में गति शक्ति की अंतरमंत्रालयी बैठक में चर्चा हुई थी।
इसके अलावा तमाम दावों के बावजूद रैक की अपर्याप्त आपूर्ति रेलवे को परेशान कर रही है। मई में कोयले की कमी सबसे ज्यादा थी और उस समय पारादीप बंदरगाह पर रैक क्षमता महज 20 प्रतिशत थी। साथ ही बंदरगाह के आंकड़ों से पता चलता है कि इसी अवधि के दौरान आयातित कोयले के लिए रेलवे एक तिहाई रैक मुहैया नहीं करा सकी। इनबाउंड कार्गो को समय से खाली नहीं कराया सका और इसकी वजह से बंदरगाह पर कंजेशन आया और पूरी आपूर्ति शृंखला में देरी हुई।
अनुमान के मुताबिक पारादीप बंदरगाह की क्षमता अक्टूबर तक बढ़ाकर 57 रैक की जाएगी, जो मई में 41 रैक थी। बंदरगाह प्राधिकरण ने चिंता जताई है कि उसकी बढ़ी क्षमता के मुताबिक रेलवे रैक मुहैया नहीं करा पा रही है, जिसकी वजह से बंदरगाह तक पहुंच प्रभावित हो रही है। क्षमता का इस्तेमाल न होने और बढ़ी लॉजिस्टिक लागत की वजह से नुकसान हो रहा है।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने इसके पहले रिपोर्ट दी थी कि बंदरगाहों को जोड़ने वाली कुछ सड़क व रेल कनेक्टिविटी परियोजनाएं सुस्त चल रही हैं और 28 रेल परियोजनाएं अभी भी योजना के स्तर पर हैं।
बहरहाल केंद्रीय बिजली सचिव आलोक कुमार ने पारादीप बंदरगाह में आने वाले व्यवधानों की मई में समीक्षा की थी और रेलवे व बंदरगाह प्राधिकरण को इन बाधाओं का प्राथमिकता के आधार पर समाधान निकालने को कहा था। उन्होंने यह भी कहा था कि रेलवे जुलाई तक बंदरहगाहों के आसपास की चल रही परियोजनाओं को पूरा करे।
आरएसआर कोयला मार्ग को हाल की नैशनल कोल लॉजिस्टिक्स प्लान का महत्त्वपूर्ण सहयोगी स्तंभ बताया गया था। सरकार का मानना है कि कोस्टल शिपिंग के माध्यम से 11 करोड़ टन कोयला ढुलाई की क्षमता है। कोस्टल शिपिंग प्लान के मुताबिक खासकर साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) और महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड (एमसीएल) की खदानों से भेजा जाने वाला कोयला खासकर बिजली की ज्यादा मांग वाले वक्त में कोस्टल शिपिंग से भेजा जाएगा, जब रेलवे इन्फ्रास्ट्रक्चर पर दबाव ज्यादा होता है। इसका मकसद लॉजिस्टिक्स लागत घटाना और बिजली संयंत्रों को पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना है। 2018 में क्रिसिल रिसर्च की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 तक कोस्टल शिपिंग दोगुनी होकर 63 एमटी हो जाएगी।
