देश में कोयले की मांग और आपूर्ति की स्थिति बिगड़ रही है। बिजली उत्पादक और गैर-बिजली क्षेत्र (विनिर्माण इकाइयों) का दावा है कि उन्हें कम कोयले की आपूर्ति हो रही है, साथ ही उनका आरोप है कि कोल इंडिया की ओर से कमतर गुणवत्ता वाले कोयले की आपूर्ति की जा रही है।
राष्ट्रीय पावर पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर देश के बिजली उत्पादक इकाइयों के पास औसतन 9.8 दिन का ही कोयला बचा है जबकि सामान्य तौर पर 24 दिन का भंडार होता है। हालांकि गंभीर स्थिति तब मानी जाती है जब भंडार 7 दिन या उससे कम हो जाए।
कोयला मंत्रालय का कहना है कि मौसमी वजहों से आूपर्ति प्रभावित हुई है और कम आपूर्ति के लिए मंत्रालय रेलवे को जिम्मेदार ठहरा रहा है। कोयला खदानों से दूर लेकिन ज्यादा खपत वाले राज्यों में स्थिति बिजली इकाइयों की मुश्किलें और भी ज्यादा हैं। महाराष्ष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक जैसे प्रमुख औद्योगिक राज्यों पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है क्योंकि उनके राज्य की इकाइयों के पास औसतन 4 दिन का कोयले का भंडार बचा है।
दूसरी ओर स्वतंत्र बिजली उत्पादकों का कहना है कि उन्हें एनटीपीसी की तुलना में कम कोयले की आपूर्ति की जा रही है। बैठक में शामिल एक कार्याधिकारी ने कहा कि कोयले की मांग और आपूर्ति में अंतर के समाधान पर कोयला मंत्रालय की ओर से आयोजित साप्ताहिक अंतर-मंत्रालय बैठक में निजी बिजली उत्पादक इकाइयां पिछले साल नवंबर से ही शिकायत कर रही हैं कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में कोयले की आपूर्ति नहीं की जा रही है।
वर्तमान में एनटीपीसी के पास राष्ट्रीय स्तर पर औसतन 13 दिन का कोयले का भंडार है जबकि स्वतंत्र बिजली इकाइयों के पास 9 दिन का भंडार बचा है। सरकार के दिशानिर्देश के अनुसार कोयले का भंडार 24 दिन का होना चाहिए।
इसके साथ ही निजी और सरकारी बिजली उत्पादकों का कहना है कि उनको आपूर्ति किए जाने वाले कोयले की गुणवत्ता खराब हो रही है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने आरोप लगाया कि बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए बोल्डर, पत्थर आदि को कोयले में मिलाकर भेजा जा रहा है।
निजी बिजली इकाई के एक अधिकारी ने कहा, ‘जी-11 ग्रेड के कोयले की आपूर्ति का अनुबंध किया गया है लेकिन हमारे गुणवत्ता विश्लेषण से पता चलता है कि वर्तमान में हमें जी-14 या जी-15 ग्रेड के कोयले की आपूर्ति हो रही है। और ऐसा तकरीबन एक महीने से भी ज्यादा समय से हो रहा है।’
उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि कम ग्रेड वाले कोयले की आपूर्ति से बिजली इकाइयों को नुकसान होता है क्योंकि उन्हें ज्यादा कोयले की जरूरत होती है।
एक अधिकारी ने कहा, ‘कोयले में क्लोरोफिक की मात्रा में कमी से रेलवे पर ज्यादा कोयले कीर आपूर्ति का दबाव होता है। सुदूर स्थित इकाइयों को कम रैक आवंटित किए जाते हैं। इसलिए इन इकाइयों के पास कोयले का भंडार में कमी आ रही है।’
हालांकि कोयला मंत्रालय के अधिकारियों ने कोयले की खबरा गुणवत्ता के आरोपों को बेबुनियाद करार देते हुए कहा कि यह मौसमी समस्या है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हर साल इन महीनों में कोयले में बोल्डर आदि की मात्रा अधिक रहती है। कोयला मंत्रालय ने कहा कि 22 जनवरी तक बिजली क्षेत्र को घरेलू कोयले की आपूर्ति 55.26 टन थी, जो पिछले साल की तुलना में 26.56 फीसदी और 2019-20 की समान अवधि की तुलना में 18.7 फीसदी अधिक है।
कोल इंडिया ने हाल ही में कहा था कि कंपनी ने वित्त वर्ष 2022 के पहले दस महीनों में अपने कोयले की इन्वेंट्री में करीब 6.4 करोड़ टन की आपूर्ति की है। कंपनी के पास इस वित्त वर्ष की शुरुआत में 9.9 करोड़ टन का बिन बिका कोयले का भंडार था।
एल्युमीनियम एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने कोयला मंत्रालय को हाल में लिखे पत्र में कहा था कि अगस्त 2021 से ही एनआरएस उसे आवश्यकता का 40 से 50 फीसदी कोयले की आपूर्ति कर रहा है। इसी तरह इंडियन पेपर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने भी कोयले की कम आपूर्ति के कारण मिलों के परिचालन में बाधा आने की शिकायत की है।
हालांकि कोयला मंत्रालय ने इन आरोपों को ओछा बताया है।
एक अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया, ‘कोल इंडिया कोयले की जमाखोरी नहीं कर रही है। एनआरएस को कोयले बेचना कोल इंडिया के लिए मुनाफे का सौदा है लेकिन प्राथमिकता बिजली क्षेत्र को दी जा रही है। हम पांच साल के लिए कोयले की नीलामी करते हैं, ऐसे में ये उद्योग क्यों नहीं खदान लेते हैं या ई-नीलामी में कोयला क्यों नहीं खरीदते हैं? एनआरएस को पिछले साल से ज्यादा कोयले की आपूर्ति की गई है। लेकिन इस साल बिजली क्षेत्र को ज्यादा आपूर्ति की गई है।
