देश में 21.2 करोड़ टन सीमेंट का उत्पादन करने वाले घरेलू सीमेंट उद्योग का दुनिया भर में दूसरा सबसे बड़ा स्थान है।
इस उद्योग पर कीमतों को लेकर गोलबंदी करने का आरोप लगाया जा रहा है। बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने यह आरोप लगाया है कि घरेलू सीमेंट उद्योग कीमतों को बढ़ाने को लेकर एकजुट हो गए हैं।
फरवरी महीने से ही सीमेंट की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हुई है और 50 किलोग्राम के सीमेंट की एक बोरी में 15-20 रुपये तक की बढ़ोतरी हुई है।
एसोसिएशन का कहना है कि बड़े खिलाड़ी मसलन एसीसी, अंबुजा सीमेंट, ग्रासीम, अल्ट्राटेक और जेपी सीमेंट ने आधे से ज्यादा घरेलू सीमेंट बाजार पर अपना नियंत्रण बना लिया है और अपने एकाधिकार की वजह से वे ही कीमतों का निर्धारण करते हैं।
एसोसिएशन ने एक नियामक प्राधिकरण बनाने की बात कही है ताकि सीमेंट उद्योग में किसी भी तरह की अवैध कारोबारी गतिविधि को बढ़ावा नहीं मिले। इसके अलावा इसने सीमेंट के निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने को कहा है क्योंकि इसकी वजह से ही सीमेंट की कीमतों में उछाल आता है और आपूर्ति में भी कमी आती है।
ऐसा पहली बार नहीं है जब बिल्डर्स ने सीमेंट उद्योग में कार्टेलाइजेशन की बात कही हो। हालांकि सीमेंट कंपनियों ने इस दावे को हमेशा खारिज किया है। जब एसीसी, अंबुजा सीमेंट और आदित्य बिड़ला ग्रुप (ग्रासिम और अल्ट्राटेक)के प्रवक्ता ने इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी देने से इनकार कर दिया। हालांकि कंपनियों ने हमेशा से ही इस मुद्दे पर नकारात्मक जवाब ही दिया है।
सीमेंट उद्योग के अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि बिल्डर्स एसोसिएशन हमेशा से ही इस मुद्दे को हवा देना चाहता है। हमारे पास कई खिलाड़ी है जो बाजार में आपूर्ति बढ़ाने के लिए दूसरे क्षेत्रों से आयात करते हैं। ऐसी स्थिति में जहां मांग में बढ़ोतरी के बावजूद भी आपूर्ति में कोई फर्क नहीं पड़ा है वहां कीमतों को लेकर कोई गोलबंदी करने की जरूरत ही क्या है?
उद्योग के सूत्रों का कहना है कि जब उद्योग ने मार्च में अपनी क्षमता से ज्यादा उत्पादन किया था उस वक्त इसके इस्तेमाल का स्तर 103 फीसदी तक पहुंच गया था। ऐसे में गुटबंदी की बात गलत है। केवल मार्च में ही पिछले साल की समान अवधि के 1.63 करोड़ टन के मुकाबले 1.81 करोड़ टन हो गया जो अब तक का सबसे ज्यादा उत्पादन है।
उद्योग से जुड़े लोग यह स्वीकार करते हैं कि कीमतों में बहुत तेजी आई है लेकिन किसी भी तरह की गुटबंदी का कोई सवाल नहीं है क्योंकि सीमेंट की कीमतें पूरी तरह से मांग और आपूर्ति के गणित पर निर्भर करती हैं। उनका कहना है, ‘किसी भी प्रोजेक्ट की पूरी लागत में सीमेंट का हिस्सा लगभग 8-12 फीसदी तक है। इसकी कीमतों में 2-3 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। इससे कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ना चाहिए।’
पिछले साल अंबुजा सीमेंट के प्रबंध निदेशक अमृत लाल कपूर ने ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया था कि गुटबंदी का आरोप पूरी तरह से गलत है और वे बाजार का हाल देखते हुए ही अपनी कीमतों को तय करते हैं। सीमेंट उद्योग वर्ष 2007-08 में पूरी तरह से दबाव में आ गई थी।
पिछले साल कॉन्फ्रेस में देश की सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी एसीसी के प्रबंध निदेशक सुमित बनर्जी का कहना था, ‘देश में इतने सारे सीमेंट कंपनियों के खिलाड़ी हैं ऐसे में गुटबंदी बेहद अव्यावहारिक है।’ वर्ष 2008-09 में घरेलू सीमेंट उद्योग ने 1.35 करोड़ टन की अतिरिक्त क्षमता बनाई। हालांकि पूरे वित्तीय वर्ष में जितने इस्तेमाल की उम्मीद थी उसमें भी कमी आई और यह 94 फीसदी के मुकाबले 88 फीसदी हो गई।
