किसान विरोध का केंद्र रहे गाजीपुर बॉर्डर पर आज गुस्से की जगह किसानों के चेहरों पर मुस्कान देखने को मिली, और वहां मौजूद लोगों के हाथों में विरोध पोस्टरों के बजाय जलेबियां थीं। 63 वर्षीय गुरपाल सिंह ने कहा, ‘जलेबी बट रही हैं, आज गुरुपर्ब है’, और उसकी मुस्कान यह संदेश दे रही थी: केंद्र सरकार के साथ उनकी लड़ाई एक सफल जीत के साथ समाप्त हुई है।
सिंह ने कहा, ‘उन्होंने (केंद्र सरकार) ने हमें खालिस्तानी, पाकिस्तानी और अफगानिस्तानी करार दिया, लेकिन आज सख्त कृषि कानूनों को निरस्त करने की सहमति जताकर प्रधानमंत्री ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि ये कानून वाकई सही नहीं थे।’
लेकिन प्रधानमंत्री द्वारा नए विवादित कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा ही ज्यादातर किसानों के लिए पर्याप्त नहीं है। जनवरी से ही धरना स्थल पर बैठे 45 वर्षीय किसान सुशील सिंह ने आंदोलन के नेता राकेश टिकैत के शब्दों का समर्थन करते हुए कहा, ‘हम तब तक गाजीपुर बॉर्डर खाली नहीं करेंगे, जब तक संसद के दोनों सदन इन तीनों कानूनों को निरस्त नहीं कर देते।’
अमरोहा जिले के सुलेमान खान इसे लेकर उत्साहित हैं कि कम से कम प्रधानमंत्री ने विरोध कर रहे किसानों की बात सुनने और इन कानूनों को निरस्त करने पर सहमति जताई है। उन्होंने कहा, ‘यह स्वागत योग्य कदम है, लेकिन हम सिर्फ वादा नहीं, बल्कि कार्यवाही चाहते हैं।’
पश्चिमी उत्तर प्रदेश से एक 85 वर्षीय किसान ने भी प्रधानमंत्री पर भरोसा जताया है, लेकिन उन्होंने सवालिया अंदाज में कहा, ‘हमें प्रधानमंत्री का वह वादा याद है जिसमें कहा गया था कि यदि उनकी सरकार सत्ता में आई तो हरेक व्यक्ति को 15 लाख रुपये दिए जाएंगे। हमें भरोसा नहीं है। मेरे 15 लाख रुपये कहां हैं? यह सरकार और प्रधानमंत्री लोगों से झूठ बोलने के लिए कुख्यात है। हम उन पर कैसे भरोसा कर सकते हैं?’
हालांकि किसान उस निर्णय से खुश हैं कि कृषि कानून निरस्त किए जाएंगे, लेकिन उन्हें इनकी समय-सीमा को लेकर आशंका है। उनका यह भी कहना है कि 3 कृषि कानून निरस्त करने के लिए सहमति जताकर प्रधानमंत्री ने अभी सिर्फ एक मांग पूरी की है। उनका कहना है, ‘सिर्फ एक मांग को स्वीकार किया गया है। यह इन कानूनों से संबंधित नहीं है। यह अन्य चीजों समेत एमएसपी के लिए हमारे अधिकार की लड़ाई है। यह तब तक जारी रहेगी, जब तक सरकार हमारी सभी मांगें पूरी नहीं करेगी।’
प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद सिर्फ किसान ही नहीं, बल्कि विरोध प्रदर्शन समाप्त होने से स्थानीय यात्री और निवासियों में भी खुशी का माहौल देखा गया। गाजियाबाद के इंदिरापुरम निवासी श्रीकांत शर्मा का कहना है, ‘अपने कार्यालय पहुंचने में अतिरिक्त 40 किलोमीटर की यात्रा करने की चुनौती अब समाप्त हो जाएगी। लेकिन किसान अभी यहां से हटेंगे या नहीं, यह बड़ा सवाल बना हुआ है।’
प्रधानमंत्री द्वारा तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए शुक्रवार को की गई घोषणा के बाद किसान खुश नजर आए और इससे सरकार तथा किसानों के बीच साल भर चला टकराव समाप्त हो जाएगा। इस विरोध प्रदर्शन में अब तक 700 से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं।
यह निर्णय ऐसे वक्त लिया गया है जब कृषि हब कहे जाने वाले पंजाब और उत्तर प्रदेश (जहां इन विवादित कृषि कानूनों का विरोध हो रहा है) समेत पांच राज्यों में विधानसभा होने हैं।
इस बीच, भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) नेता राकेश टिकैत ने कहा कि विरोध अभी पूरी तरह समाप्त नहीं होगा। उन्होंने ट्वीट किया, ‘आंदोलन तुरंत वापस नहीं लिया जाएगा, हमें उस दिन का इंतजार करना होगा, जब संसद में इन कृषि कानूनों को निरस्त किया जाएगा। एमएसपी के साथ साथ, सरकार को किसानों की अन्य समस्याओं पर भी चर्चा करनी चाहिए।’
विरोध प्रदर्शन में मुख्य तौर पर शामिल रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने भी कहा है कि वह संसदीय प्रक्रियाओं के साथ होने वाली घोषणा का इंतजार करेंगे। प्रधानमंत्री द्वारा घर वापस जाने के सवाल पर प्रतिक्रिया देते हुए मोर्चा ने कहा है कि जब तक मांगें पूरी नहीं होंगी, तब तक घर वापसी नहीं होगी।
