राज्य में लंबे समय से खेसारी दाल की बिक्री पर लगे प्रतिबंध को महाराष्ट्र सरकार ने समाप्त कर दिया है।
पिछले काफी समय से विदर्भ के किसान खेसारी की बिक्री पर लगी रोक को हटाने की मांग कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि मानव स्वास्थ्य के लिए इसे हानिकारक बताते हुए महाराष्ट्र में 1961 में इस दाल की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
खेसारी दाल की बिक्री पर लगी रोक हटने से किसानों के साथ-साथ कारोबारी भी खुश हैं। ग्रोमा के अध्यक्ष शरद मारू ने इस प्रतिबंध के हटाए जाने पर कहा कि सरकार को यह फैसला बहुत पहले ले लेना चाहिए था। उन्होंने कहा कि हालांकि अभी बाजार में इसकी उपलब्धता नहीं है, पर अगले सीजन से यह बाजार में दिखाई देने लगेगी।
कारोबारियों के अनुसार, खेसारी के कारोबार पर लगी रोक के हटने का असर दाल की कीमत पर भी पड़ेगा। फिलहाल खेसारी दाल 12 से 15 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से मिल रही है जबकि दूसरी दालें बाजार में 38 से 42 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिल रही हैं। लगभग दो दशक से विदर्भ के किसान महाराष्ट्र में खेसारी दाल की बिक्री पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग कर रहे थे।
किसानों के दबाव में महाराष्ट्र सरकार भी केन्द्र सरकार से इस प्रतिबंध को हटाने की मांग पिछले 15 सालों से करती रही है। लेकिन इस मुद्दे पर केन्द्र सरकार का रवैया कभी स्पष्ट नहीं रहा। महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने पिछले 15 साल में तीन बार इस संबंध में प्रस्ताव पारित करके केन्द्र को भेजा पर केन्द्र सरकार ने इस मामले पर कोई भी निर्णय नहीं लिया।
इसके बजाए, उसने जांच के लिए इसे हैदराबाद लैबोरेटरी भेज दिया। पिछले दिनों हैदराबाद से जवाब मिला कि इंसानों पर इसके असर के परीक्षण से पहले जानवरों को खिलाकर इस दाल के असर को परखा जाएगा जिसमें कम से कम दो से तीन वर्ष का समय लग जाएगा।
लैबोरेटरी के इस जवाब के बाद राज्य सरकार ने पश्चिम बंगाल में खेसारी दाल की बिक्री पर कोई रोक नहीं होने का हवाला देते हुए केन्द्र सरकार के आदेश को दरकिनार कर खेसारी को प्रतिबंध मुक्त किए जाने का ऐलान कर दिया। मालूम हो कि खेसारी की बिक्री पर रोक के लिए केन्द्र सरकार ने 2 फरवरी 1961 को राज्य सरकारों को एक अधिसूचना जारी की थी।
इसमें कहा गया था कि यह दाल इंसानों के खाने लायक नहीं है लिहाजा इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। इस अधिसूचना के बाद 21 नवंबर 1961 से महाराष्ट्र सरकार ने इसके कारोबार पर पूरी तरह से रोक लगा दी।
खेसारी दाल का उपयोग अभी तक गरीबों द्वारा ही किया जाता रहा है, जबकि बेसन में मिलावट के लिए इसके आटे का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा, होटलों में भी इस दाल का उपयोग तुअर दाल की जगह किया जाता है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा खेसारी का उत्पादन भंडारा, चंद्रपुर और गढ़ चिरौली जिलों में होता है। यहां तकरीबन 36 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है। खेसारी को यहां के लोग लोखोडी दाल भी कहते हैं।