सीमेंट और स्टील उद्योग पर कार्टल बनाए जाने के सरकार के आरोपों के बाद बिल्डरों की लॉबी ने कहा है कि कंस्ट्रक् शन इंडस्ट्री के लिए जरूरी इन दोनों चीजों की बढ़ती कीमत पर सरकार लगाम लगाए।
बिल्डरों का कहना है कि निर्माण की कुल लागत के आधे हिस्से की भागीदारी सीमेंट व स्टील करता है, लिहाजा अगर कीमतें बढ़ती है तो उनके पास कोई चारा नहीं बचता सिवाय इसके कि बढ़ी हुई लागत का भार आम उपभोक्ता पर डाल दिया जाए।
बिल्डर्स असोसिएशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन महेश एम. मुड्डा ने कहा कि सीमेंट निर्माताओं ने सचमुच कार्टल बना रखा है और सरकार को इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार सीमेंट व स्टील की कीमतों पर लगाम कसने के लिए रेग्युलेटरी की नियुक्ति करे ताकि कंपनियां मनमुताबिक इसकी कीमतें न बढ़ा पाए।
असोसिएशन के मुताबिक, पिछले दो साल के दौरान कंस्ट्रक् शन की कुल लागत में सीमेंट और स्टील की हिस्सेदारी 40 फीसदी से 52 फीसदी तक पहुंच चुकी है। उन्होंने कहा कि सीमेंट की कीमतें 165 रुपये प्रति बैग से 250 रुपये प्रति बैग हो गई है। स्टील की कीमतें 35 हजार रुपये प्रति टन से 55 हजार रुपये प्रति टन हो गई है।
उन्होंने कहा कि कीमतों का असामान्य रूप से बढ़ना ठीक नहीं है।असोसिएशन के मुताबिक मुंबई में प्रति स्क्वैयर फीट निर्माण की लागत 1100 रुपये से 1300 रुपये के आसपास बैठती है। उन्होंने कहा कि छोटे शहरों में मौजूद छोटे बिल्डर पर इसका ज्यादा भार पड़रहा है। उन्होंने कहा कि जिस प्रोजेक्ट का निर्माण चल रहा है उन पर भी और जो बनने वाला है, उस पर भी इसका असर पड़ना तय है।
असोसिएशन के कन्वीनर डी. एल. देसाई ने कहा कि पाकिस्तान से आयातित सीमेंट यहां काफी सस्ता है। पाक से आया सीमेंट 204 रुपये प्रति बैग मिल रहा है जबकि घरेलू बाजार में सी मेंट की कीमत 250 रुपये प्रति बैग है। उन्होंने कहा कि सीमेंट कंपनियों का मुनाफा बढ़ रहा है, लेकिन उन्हें इस तरह लूट नहीं मचानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सीमेंट की कीमत 200 रुपये प्रति बैग से नीचे होनी चाहिए।
वैसे सीमेंट कंपनियों ने ऐसे कार्टल की मौजूदगी से हमेशा ही इनकार किया है। हाल ही में अंबुजा सीमेंट केप्रबंध निदेशक ने कार्टल की मौजूदगी से इनकार किया था।