एमके वेल्थ मैनेजमेंट द्वारा कराए गए अध्ययन से पता चलता है कि कच्चे तेल की कीमतें 78-80 डॉलर प्रति बैदल के ऊंचे स्तरों पर पहुंच सकती हैं। इस अध्ययन में कहा गया है कि हालांकि यदि अमेरिकी डॉलर प्रमुख मुद्राओं की तुलना में मजबूत हुआ तो यह तेजी सीमित रह सकती है।
बुधवार को वैश्विक बेंचमार्क ब्रेंट 75 डॉलर प्रति बैरल की ऊंचाई पर पहुंच गया था। यह स्तर अक्टूबर 2018 में दर्ज किया गया था।
एमके ने कहा है कि अमेरिका, यूरोप और कुछ प्रमुख एशियाई देशों में आर्थिक गतिविधि में सुधार से तेल कीमतों को बढ़ावा मिला था। उसने कहा है, ‘खपत बढऩे से कीमतों को बढ़ावा मिला है। फिर से, हालात काफी हद तक ओपेक+ द्वारा उठाए गए कदमों पर निर्भर करेंगे। रूस अब उत्पादन कटौती लक्ष्य हासिल करने की दिशा में ओपेक के अनुरूप है।’
एमके का कहना है कि तापमान परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई से भी तेल बाजार पर दबाव बढ़ सकता है। परिसंपत्ति प्रबंधक ने कहा कि अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु सौदे और सुधार से तेल कीमतों में नरमी लाने में मदद मिल सकती है।
एमके के अध्ययन में कहा गया है, ‘तेल बाजार पर जिस प्रमुख कारक का दबदबा रहा है, वह है अमेरिका और ईरान के बीच बेहतर संबंधों की संभावना। इसका मतलब होगा कि बाजार में ईरान से आपूर्ति होगी। इसलिए तेल कीमतों नीचे आ सकती हैं।’
