केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरकार के स्वामित्व में विकास वित्त संस्थान (डीएफआई) गठित करने के विधेयक को आज मंजूरी दे दी। इस संस्थान की शुरुआती चुकता पूंजी 20,000 करोड़ रुपये होगी, जिससे वह अगले कुछ साल में बाजार से करीब 3 लाख करोड़ रुपये उठा सके और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और देश की विकास की जरूरतों के लिए दीर्घावधि ऋण मुहैया करा सके। मगर 3 लाख करोड़ रुपये की यह रकम 2019-20 से 2024-25 के बीच राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन के तहत आने वाली 7,000 से ज्यादा परियोजनाओं की 111 लाख करोड़ रुपये की कुल लागत की 3 फीसदी से भी कम है।
बैठक के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि सरकार संस्थान को 5,000 करोड़ रुपये का अनुदान भी देगी। उन्होंने कहा कि शुरुआत में डीएफआई पर सरकार का पूर्ण स्वामित्व होगा और अगले कुछ वर्षों में प्रवर्तक की हिस्सेदारी घटकार 26 फीसदी कर दी जाएगी।
वित्त मंत्री ने कहा, ‘हम विकास और वित्तीय लक्ष्यों को ध्यान में रखकर डीएफआई का गठन कर रहे हैं। हमने इसका जिक्र बजट भाषण और बजट सत्र में किया है। मंत्रिमंडल ने इसे गठित करने की मंजूरी भी दे दी है। इसके साथ हमारे पास एक संस्थान और संस्थागत व्यवस्था होगी, जिससे दीर्घावधि के लिए पूंजी जुटाने में मदद मिलेगी।’
बुनियादी वित्त निकाय आईआईएफसीएल का विलय प्रस्तावित डीएफआई में किए जाने की अटकलों पर वित्तीय सेवा सचिव देवाशिष पांडा ने कहा कि नया संस्थान पूरी तरह नए सिरे से शुरू होगा। संस्थान के गठित होने के बाद इसका निदेशकमंडल अन्य कंपनियों के अधिग्रहण या विलय पर निर्णय करेगा।
सरकार बीमा और पेंशन फंड जैसे दीर्घावधि के निवेशकों को आकर्षित करने के लिए डीएफआई में निवेश पर दस साल के लिए कर छूट देगी। इसके साथ ही स्टांप शुल्क में भी रियायत दी जाएगी, जिसके लिए भारतीय स्टांप अधिनियम में संशोधन किया जाएगा।
सीतारमण ने कहा, ‘इन सबके जरिये हम बड़े पेंशन फंडों, सॉवरिन वेल्थ फंडों से इसमें निवेश आने की उम्मीद कर रहे हैं। जिस तरह हमने इन्हें राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा निवेश फंड में आकर्षित किया है, उसी तरह डीएफआई में निवेश के लिए भी हम उन्हें ला पाएंगे।’ खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर दिव्यांशु ने कहा कि दस साल के लिए कर लाभ और स्टांप शुल्क रियायत मिलने से पेंशन फंड और सॉवरिन वेल्थ फंड इसमें निवेश के लिए आगे आएंगे। सरकार डीएफआई को कुछ प्रतिभूतियां भी देने की योजना बना रही है ताकि पूंजी की लागत कम हो। सीतारमण ने कहा कि इससे बॉन्ड बाजार पर भी अच्छा असर पड़ेगा।
वित्तीय सेवा सचिव देवाशिष पांडा ने कहा कि बीमा फंड इस समय भी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश कर रहे हैं, लेकिन जब सरकार समॢथत संस्थान होगा तो पैसा लगाने को लेकर उनमें भरोसा बढ़ेगा।
उन्होंने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं नियामक निवेश सीमा को बढ़ाएगा।’सीतारमण ने कहा कि प्रस्तावित डीएफआई के प्रबंध निदेशकों और उप प्रबंध निदेशकों को बाजार अनुकूल पारितोषिक दिया जाएगा, जिससे सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को इससे जोड़ा जा सके।
उन्होंने कहा, ‘हम प्रबंध निदेशक और उप प्रबंध निदेशकों के लिए उम्र की ऊंची सीमा रखनेे की संभावना तलाश रहे हैं। मेरा मानना है कि यह संस्थान तेजी से बाजार की उम्मीदों पर खरा उतरेगा।’
वित्त मंत्री ने कहा कि डीएफआई के निदेशकमंडल को पूर्णकालिक निदेशक नियुक्त करने और हटाने का अधिकार होगा।जे सागर एसोसिएट्स में पार्टनर सौमित्र मजूमदार ने कहा, ‘डीएफआई को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी तरह की दीर्घावधि पूंजी तक पहुंच की अनुमति होनी चाहिए। परियोजनाओं के प्रभावी निगरानी के लिए क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा नजर रखे जाने की जरूरत होगी।’
स्पाइस रूट लीगल के पार्टनर मैथ्यू चाको ने कहा कि यह कदम संभवत: दस साल बाद उठाया गया है लेकिन देर आयद, दुरुस्त आयद।इससे पहले कार्यबल की सिफारिशों के आधार पर सरकार राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन लेकर आई है। इसके तहत 7,671 परियोजनाओं का खाका तैयार किया गया है, जिनकी कुल लागत 1,919.05 अरब डॉलर है। ये परियोजनाएं 2024-25 तक पूरी की जानी हैं। इनमें से 1,766 परियोजनाओं पर काम शुरू हो चुका है।
देश में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्तपोषण की समस्या का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि बैंक दीर्घावधि की जरूरत के बजाय अल्पावधि का कर्ज देने में सहज महसूस करता है। हालांकि देश में कई क्षेत्रों के लिए इस तरह के संस्थान पहले से हैं जैसे भारतीय रेल वित्त निगम, राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक और भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक।
