एशिया के दो प्रमुख इस्पात निर्माता देश चीन और भारत विश्व स्तर पर तेजी से अपनी पहचान बना रहे हैं।
जापान को छोड़कर एशिया में कुल स्टील उत्पादन 1975 में जहां 40 मिलियन टन था, वहीं 2007 में यह बढ़कर 635 मिलियन टन तक पहुंच गया है।
यानी की तकररीबन 16 गुना की वृद्धि दर्ज की गई है। लंदल स्थित स्टील विश्लेषक एमईपीएस फारॅकास्ट पर यकीन करें, तो 2010 में यह आंकड़ा 773 मिलियन टन तक पहुंच सकता है।
सच तो यह है कि 1970 के दशक के बाद स्टील उद्योग में तेजी से विकास हुआ है। 1970 में रूस, अमेरिका, जापान और यूरोपीय देशों का इस्पात उत्पादन में वर्चस्व था।
एशिया का उस दौरान कुल उत्पादन में हिस्सेदारी 23 फीसदी थी, जबकि जापान इसमें सबसे बड़ा उत्पादक था।
1980 के दशक की बात करें, तो इस दौरान स्टील के उत्पादन में 5.3 फीसदी की मामूली वृद्धि दर्ज की गई।
हालांकि 1982-83 के दौरान यूरोपीय यूनियन और अमेरिका में स्टील उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की गई। इस दौरान एशियाई देश में स्टील का उत्पादन तेजी से बढ़ा और विश्व के कुल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी भी काफी बढ़ी।
सही मायने में इस दशक में पिछले दशक की तुलना में तकरीबन दोगुनी वृद्धि हुई।
1990 की दशक में स्टील उत्पादन में काफी गिरावट आई। ऐसा रूस की अर्थव्यवस्था में आई मंदी की वजह से हुआ।
इस दौरान उत्पादन में आई गिरावट की बात करें, तो यह 1980 के अंत में जहां 160 मिलियन टन इस्पात का उत्पादन किया जाता था, जो 1996 में गिरकर 77 मिलियन टन तक पहुंच गया।
हालांकि इस दौरान उत्तरी अमेरिका की अर्थव्यवस्था में आई तेजी से वहां उत्पादन में वृद्धि देखी गई, जबकि यूरोपीय देशों में भी इसके उत्पादन में थोड़ा सुधार देखा गया।
एशिया की बात करें, तो इसमें तेजी से वृद्धि हुई और यहां 84 मिलियन टन स्टील का उत्पादन किया गया।
वैश्विक हिस्सेदारी की बात करें, तो एशिया की हिस्सेदारी 29 फीसदी से बढ़कर 39 फीसदी तक पहुंच गई।
1992 में जापान रूस से स्टील उत्पादन में आगे निकल गया। इसी तरह 1995 में चीन स्टील के उत्पादन में अमेरिका से आगे निकल गया।
1996 में जापान दुनिया का सबसे बड़ा स्टील उत्पादक देश बन गया। 1994 में तकनीक में काफी बदलाव आया, जिससे इस्पात उद्योग को नई दिशा मिली और उत्पादन में भी काफी तेजी आई।
वर्ष 2007 की बात करें, तो इस साल चीन में स्टील की मांग और उत्पादन, दोनों में काफी तेजी आई है। इस दौरान चीन में उत्पादन का आंकड़ा 490 मिलियन टन तक पहुंच गया, जबकि वर्ष 2000 में यह 127 मिलियन टन ही था।
उत्पादन में आई इस तेजी की वजह से कच्चे माल, यानी लौह अयस्क और कोयले की खपत बहुत बढ़ गई। यही वजह रही कि कायले और लौह-अयस्क के दामों में तेजी से आई।
2004 में विश्व का कुल उत्पादन 1 बिलियन टन दर्ज किया गया। इसी दौरान मित्तल ग्रुप ने ईस्ट यूरोपीयन मिल्स को खरीद लिया। वर्ष 2006 में मित्तल ने लक्जेमबर्ग की आर्सेलर कंपनी को खरीद लिया और इसका नाम आर्सेलर-मित्तल हो गया।
इसके बाद यह विश्व की सबसे बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी बन गई और 100 मिलियन टन का उत्पादन करने वाली पहली कंपनी बन गई।
जनवरी 2007 को टाटा स्टील ने यूरोप की कोरस कंपनी को 11.3 बिलियन डॉलर में अधिग्रहण कर लिया। ऐसे में कुल स्टील उत्पादन की एशियाई हिस्सेदारी बढ़कर 56 फीसदी हो गई।
हालांकि इस दौरान जापान का उत्पादन में खास वृद्धि नहीं देखी गई। भारत दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश बना गया, जबकि 2000 में यह आठवां सबसे बड़ा देश था।
दूसरी तरफ देखें तो स्टील के उत्पादन में आ रही वृद्धि से कच्चे माल की कीमतों पर भी पड़ा है। इससे स्टील की कीमतों में उत्तरोतर वृद्धि दर्ज की गई और 2008 में इसकी कीमतों में और तेजी का अंदेशा है।