उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के एक गांव, बड़ागांव के युवा किसान नितिन त्यागी ने चिकित्सा उद्योग की अपनी अच्छी नौकरी 10 एकड़ जमीन पर खेती करने के लिए छोड़ दी। इस पुश्तैनी जमीन पर उनका परिवार मुख्य रूप से गन्ना, आलू और गेहूं उगाता है। त्यागी और उनके उम्रदराज चाचा सतबीर के मुताबिक तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन दरअसल कृषि क्षेत्र को प्रभावित करने वाली बड़ी समस्याओं को जाहिर करने का ही एक माध्यम था। इन कानूनों को अब केंद्र सरकार ने रद्द करने का फैसला किया है। इस क्षेत्र की प्रमुख समस्याओं में गन्ने की कम खरीद कीमत, भुगतान में देरी और हाल ही में उर्वरक (डीएपी) की कमी सबसे प्रमुख है।
कानूनों को रद्द किए जाने से कुछ दिन पहले ही त्यागी ने स्वीकार किया, ‘मैं किसान आंदोलन का बड़ा समर्थक नहीं रहा हूं क्योंकि इसमें काफी हद तक एक जाति विशेष के लोग थे, जो आंदोलन में सबसे आगे थे। लेकिन इस आंदोलन में यह मुद्दा निश्चित रूप से उठाया गया, चाहे कोई किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा क्यों न हो।’ कुछ अनुमानों के मुताबिक गन्ने से जुड़े मुद्दे का असर पश्चिम उत्तर प्रदेश की तकरीबन 100 विधानसभा सीटों पर देखा गया है। राज्य में कुल 403 विधानसभा सीटें हैं।
त्यागी शिकायती लहजे में कहते हैं, ‘पिछले कुछ वर्षों में हमारी उत्पादन लागत कई गुना बढ़ गई है लेकिन गन्ने की राज्य द्वारा तय की गई खरीद कीमत (एसएपी) उस अनुपात में नहीं बढ़ी है।’ हाल ही में राज्य सरकार ने 1 अक्टूबर को शुरू हुए 2021-22 के गन्ना सीजन के दौरान फसल के एसएपी या खरीद मूल्य में 25 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की। इसकी वजह से इस क्षेत्र की उपज में 85 फीसदी हिस्सेदारी वाली सामान्य किस्म की फसल की खरीद कीमत 340 रुपये प्रति क्विंटल तक हो गई।
हालांकि, इस वृद्धि से भी किसान संतुष्ट नहीं हुए क्योंकि उनकी मांग है कि डीजल मूल्य और अन्य उत्पादन लागत में वृद्धि के कारण खरीद कीमत 425 रुपये प्रति क्विंटल होनी चाहिए क्योंकि खरीद मूल्य तीन वर्षों से नहीं बढ़ाया गया है। किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले किसान संगठनों में से एक भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने उस समय कहा था, ‘खरीद कीमत में यह वृद्धि बड़ा मजाक है क्योंकि पड़ोसी राज्यों में कीमतें 360 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में बिजली भी महंगी है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ही सांसद वरुण गांधी ने 400 रुपये प्रति क्विंटल केभाव की मांग की है।’
सकरोद गांव के किसान रामपाल सिंह कहते हैं, ‘तीन साल के बाद बड़ी बढ़ोतरी की घोषणा करने के बजाय सरकार को हर साल न्यूनतम 5 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीद कीमत बढ़ानी चाहिए। ऐसा हुआ होता तो हमारी आमदनी का बड़ा हिस्सा कम नहीं हुआ होता।’
उत्पादन की बढ़ती लागत
पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसानों के लिए एक बड़ा मुद्दा यह है कि गन्ने से मिलने वाला प्रफिल लागत के अनुपात में नहीं बढ़ा है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार बागपत के आसपास के क्षेत्रों में गन्ने के उत्पादन की प्रति हेक्टेयर लागत 70,000-72,000 रुपये से बढ़कर करीब 94,000 रुपये हो गई है जबकि 2021-22 सीजन में औसत पैदावार 700-750 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होने का अनुमान है।
यह बात दीगर है कि मुश्किलों के बावजूद गन्ने की खेती केवल उत्तर प्रदेश में बढ़ी है। इसका एक बड़ा कारण अन्य फसलों की तुलना में गन्ने का सुनिश्चित मूल्य है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015-16 और 2017-18 के बीच गन्ने ने अपनी उत्पादन लागत (ए2+एफ एल लागत) पर 100 प्रतिशत प्रतिफ ल दिया है, जबकि कपास और गेहूं दोनों ने 50 प्रतिशत से अधिक का ही प्रतिफ ल दिया है।
