किसानों की उपज, खासकर चावल एवं गेहूं की आधिकाधिक खरीदारी के लिए बिहार में जल्द ही पंजाब व हरियाणा की तरह मंडियों की स्थापना की जाएगी।
साथ ही अगले साल तक 12 लाख टन तक खाद्यान्न रखने के लिए कई नए गोदाम बनाने का लक्ष्य रखा गया है। फिलहाल बिहार के गोदामों में मात्र 5-6 लाख टन खाद्यान्न रखने की क्षमता है।
बिहार सरकार ने इस साल 8.5 लाख टन गेहूं खरीदारी करने का रिकार्ड लक्ष्य रखा है। गेहूं की खरीदारी बिहार में 15 अप्रैल से शुरू होने वाली थी लेकिन तकनीकी कारणों से यह खरीदारी अब 25 अप्रैल से शुरू होगी।
बिहार सरकार के खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के संयुक्त सचिव सुरेश कुमार वर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि बिहार में पंजाब व हरियाणा के तर्ज पर मंडी नहीं होने के कारण फसलों की खरीदारी में समस्या होती है। पहले बिहार के जिलों में बाजार समिति की व्यवस्था थी, जिसे भंग कर दिया गया है। लेकिन अब सरकार आधुनिक मंडी स्थापित करने की दिशा में अग्रसर है।
गेहूं खरीदारी के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि पिछले साल 5.5 लाख टन गेहूं की खरीदारी की गयी थी जबकि इस बार यह लक्ष्य 8.5 लाख टन का है। हालांकि इस साल भी बिहार में गेहूं का उत्पादन पिछले साल की तरह ही 50-51 लाख टन होने का अनुमान लगाया गया है। उन्होंने बताया कि गेहूं खरीद में देरी होने की मुख्य वजह यह है कि यहां के गोदाम फिलहाल भरे हुए हैं।
और उसे खाली करने का इंतजाम किया जा रहा है। इस साल बिहार में 10 लाख टन चावल की सरकारी खरीद की गयी है जो कि एक रिकार्ड है। कृषि विभाग के उपनिदेशक संजय कुमार के मुताबिक दो साल पहले मात्र 19 हजार टन गेहूं की सरकारी खरीद की गयी थी। और उससे पहले गेहूं व चावल की सरकारी खरीद नाममात्र की होती थी।
गौरतलब है कि पंजाब व हरियाणा में शत-प्रतिशत गेहूं की सरकारी खरीदारी की जाती है। जबकि बिहार में यह खरीद महज 10 फीसदी है। बिहार के किसानों के मुताबिक बिचौलिए उनके खेत से ही गेहूं की खरीदारी कर लेते हैं और उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 150-200 रुपये प्रति क्विंटल कम कीमत पर अपनी फसल को बेचना पड़ता है।
सूत्रों के मुताबिक बिहार में फुलवारी शरीफ के बाजार में गेहूं की आवक शुरू हो चुकी है। और किसानों को गेहूं के एमएसपी 1080 रुपये प्रति क्विंटल से भी कम कीमत पर गेहूं बेचना पड़ रहा है। फिलहाल सरकार जिला स्तर पर खरीदारी की व्यवस्था करती है जहां किसान अपनी फसल लाते हैं और हाथोहाथ उसकी खरीद-बिक्री की जाती है।
