रिफाइनरियों की ओर से उत्पादन कम करने के बाद अब पॉलीमर के भाव में तेजी आई है। सूत्रों के मुताबिक, कीमतें बढ़ने की वजह प्लास्टिक संवर्द्धकों की ओर से मांग में आई तेजी है।
हाल यह है कि पिछले महीने भर में ही पॉलीमर के दाम 15 से 20 फीसदी तक बढ़ गए हैं। इसके पहले नवंबर के दूसरे हफ्ते में पॉलीमर के दाम पिछले कई साल के न्यूनतम स्तर तक चले गए थे।
पॉलीमर की कीमतों में यह तेजी तब आई है जब कच्चे तेल की कीमतें लगातार कम हो रही हैं। जानकारों के मुताबिक, पूरी दुनिया में रिफाइनरियों की ओर से पॉलीमर उत्पादन में हो रही कमी से प्लास्टिक संवर्द्धकों के बीच यह संदेश गया कि इसका बाजार नीचे जा रहा है और तब इन इकाइयों ने ऑर्डर देना शुरू कर दिया।
माल जमा करने की संवर्द्धकों की योजना देखते हुए कई रिफाइनरियों ने आपूर्ति नियंत्रित करनी शुरू कर दी, ताकि यह संदेश जाए कि बुरे दिन अब लद गए। 1 जुलाई से 13 नवंबर के बीच ज्यादातर पॉलीमर की कीमतों में 40 से 50 फीसदी की कमी हुई है। जबकि 13 नवंबर से अब तक इसके दाम में 10 फीसदी की तेजी हुई।
सुप्रीम पेट्र्रोकेम लिमिटेड के सीईओ (निर्यात-विपणन) आर रंगराजन ने कहा, ”उत्पादन में बड़े पैमाने पर हुई कटौती के चलते पॉलीमर की कीमतें चढ़ी हैं। फिलहाल हम यह उम्मीद नहीं कर रहे कि इसके दाम अचानक जून-जुलाई के स्तर तक आ जाएंगे। हम तो बस यही उम्मीद कर रहे हैं कि 2009 की पहली और दूसरी तिमाही तक इसकी कीमतें स्थिर हो जाएंगी।”
अखिल भारतीय प्लास्टिक उत्पादक संघ के अध्यक्ष कैलाश मोरारका ने बताया कि प्लास्टिक के कच्चे माल में थोड़ी स्थिरता आई है फिर भी प्लास्टिक सामानों की मांग में कोई प्रत्यक्ष तेजी नहीं आई है। फिलहाल 20 फीसदी प्लास्टिक इकाइयां बंद पड़ी हैं, जबकि 20 से 25 फीसदी इकाइयां ऐसी हैं जो केवल एक शिफ्ट में काम कर रही हैं।
मोरारका ने बताया कि छोटी और मध्यम श्रेणी की इकाइयो पर ज्यादा असर पड़ा है, क्योंकि भुगतान को लेकर इन्हें काफी समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। इससे इन इकाइयों की रेटिंग पर असर पड़ रहा है। उन्हें उम्मीद है कि कीमतों के स्थिर होने से मांग में एक बार फिर तेजी आएगी।
पॉली प्रोपीलीन, हाई डेंसिटी पॉली एथीलिन, लो डेंसिटी पॉली एथीलिन, पॉली विनाइल क्लोराइड आदि की कीमतें जुलाई में शिखर पर पहुंच गई थीं, जब कच्चे तेल ने 147 डॉलर प्रति बैरल को छुआ था। कच्चे तेल की कीमतें जब घटनी शुरू हुई तब न केवल पॉलीमर की कीमतें गिरीं बल्कि इसकी मांग में भी कमी हुई।
इसकी वजह मंदी का भय रही। नवंबर के दूसरे हफ्ते में जब पॉलीमर की कीमतों ने न्यूनतम स्तर को छू लिया तब से अब तक तेजी लगातार जारी है। मुश्किल हालात में ऑटो के कल-पुर्जे बनाने वाली कई कंपनियों ने श्रमिकों का मेहनताना कम कर दिया है।