केंद्र द्वारा दोबारा शुरू किए गए राष्ट्रीय खाद्य तेल-पाम ऑयल मिशन (एनएमईओ-ओपी), जिसमें 11,000 करोड़ रुपये से अधिक का व्यय होना है, के अंतर्गत मुख्य रूप से दक्षिण में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना तथा देश के उत्तर-पूर्वी भागों में असम, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में पाम ऑयल के तहत क्षेत्र का विस्तार करने पर विचार किया जाएगा।
आईसीएआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑयल पाम रिसर्च (आईसीएआर-आईआईओपीआर) के आकलन के अनुसार वर्ष 2020 में इसके द्वारा पहचानी गई कुल 28 लाख हेक्टेयर की संभावित भूमि में से लगभग 58 प्रतिशत इन पांच राज्यों में है। केंद्र सरकार ने संसद में सवालों के जवाब में यह जानकारी दी है।
इसके अलावा आईसीएआर के अध्ययन में यह भी पाया गया है कि सर्वोत्तम कृषि के लिए पाम ऑयल को चावल, केले और गन्ने जैसी फसलों की तुलना में पानी की कम आवश्यकता होती है। सरकार द्वारा हाल ही में साझा किए गए संसद में दिए गए उत्तर के अनुसार कुल मिलाकर आईसीएआर के अध्ययन में 284 जिलों की पहचान की है, जिनमें पाम की खेती को वैकल्पिक प्रकार की कृषि के रूप में अपनाया जा सकता है। इनमें से अधिकांश जिले बिहार (35), मध्यप्रदेश (29), महाराष्ट्र (28), तेलंगाना (27), छत्तीसगढ़ (15) और कर्नाटक (15) में हैं।
सरकार ने संसद में जवाब दिया है ‘संभावित क्षेत्र का आकलन करते हुए आईसीएआर-आईआईओपीआर ने पर्यावरण और जैव विविधता के सभी मानकों पर विचार किया है और चुनिंदा जिलों तथा राज्यों में इसकी खेती की सिफारिश की है।’ सरकार ने कहा है कि इन फसलों के लिए संभावित जिलों की पहचान भूमि की उपयुक्तता और औसत पैदावार के आधार पर की गई है।
संसद को दिए गए एक अन्य जवाब में केंद्र ने कहा है कि आईसीएआर-आईआईओपीआर की पुनर्मूल्यांकन समिति ने वर्ष 2020 में रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) का उपयोग करते हुए सिंचित तथा वर्षा आधारित परिस्थितियों में पाम की खेती के लिए उपयुक्त भूमि की पहचान की थी। सिंचित परिस्थितियों के लिए, भूजल स्तर, वार्षिक वर्षा, न्यूनतम तापमान, दोहरी या तिहरी फसल वाले क्षेत्र प्रमुख मानदंड थे। अधिकारियों के अनुसार इस नए कार्यक्रम की योजना वर्ष 2025-26 तक पाम की खेती को बढ़ाकर 10 लाख हेक्टेयर और वर्ष 2029-30 तक 17 से 18 लाख हेक्टेयर तक करने की है। फिलहाल भारत में घरेलू स्तर पर करीब 3.4 लाख हेक्टेयर की जमीन पाम की खेती के तहत आती है।
