ऑटोमोटिव, घरों में इस्तेमाल किए जाने वाले इनवर्टर और कंप्यूटर के क्षेत्र में यूपीएस की बढ़ती खपत के कारण इस वर्ष देश में सीसे की मांग में 15 प्रतिशत तक की वृध्दि हो सकती है।
इंडिया लेड जिंक डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईएलजेडडीए) के अध्यक्ष एल पुगाझेंती ने कहा, ‘सीसा (लेड) उत्पादन के लगभग 70 प्रतिशत की खपत लेड-एसिड बैटरी में की जाती है। ऑटोमोटिव, इनवर्टर और यूपीएस के क्षेत्र में इसकी खपत बढ़ रही है। इन क्षेत्रों में विकास जारी रहने से नि:संदेह लेड की मांग में कम से कम 15 की वृध्दि होगी।’
आईएलजेडडीए भारत में लेड और जस्ते (जिंक) की खपत को प्रोत्साहित करता है। लेड जस्ते का सह-उत्पाद है। इसलिए दो बड़े जस्ता उत्पादक हिंदुस्तान जिंक और बिनानी जिंक भारत के लेड जरूरतों का लगभग 30 प्रतिशत (लगभग 2,50,000 टन) उपलब्ध कराते हैं। शेष 70 प्रतिशत की आपूर्ति आयात और पुनर्चक्रण के द्वारा की जाती है। पुनर्चक्रण के दौरान इस धातु के भौतिक या रासायनिक गुणों में कोई कमी नहीं आती।
पुर्तगाल स्थित इंटरनेशनल लेड ऐंड जिंक स्टडी ग्रुप (आईएलजेडएसजी) के नवीनतम अनुमानों के अनुसार वर्ष 2008 में लेड की वैश्विक मांग में 3.9 प्रतिशत की वृध्दि होगी और यह 85.7 लाख टन हो जाएगा। लेड की सबसे अधिक मांग चीन में होगी (12.7 प्रतिशत)। साथ ही भारत, जापान और कोरिया की मांगों में भी अच्छी वृध्दि देखने को मिलेगी। जबकि चालू वर्ष में यूरोप की मांग में 2 प्रतिशत की कमी और अमेरिका की मांग के पूर्ववत रहने का अनुमान है।
विश्व के लेड खनन उत्पादन में 8.4 फीसदी की वृध्दि होने का अनुमान है। इसके अनुसार साल के अंत तक वैश्विक उत्पादन में 39.1 लाक्ष टन की वृध्दि होगी। मुख्य रुप से ऑस्ट्रेलिया, बोलिविया, कनाडा, चीन, इरान, मेक्सिको, पेरू और अमेरिका के उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। मैकेडोनिया और पुर्तगाल में खानों के फिर से शुरु होने से यूरोपीय उत्पादनों में भी वृध्दि होगी।
साल 2008 में चीन के लेड उत्पादन में वृध्दि होने से परिष्कृत लेड धातु के वैश्विक उत्पादन में 4.3 प्रतिशत की वृध्दि (86 लाख टन) होने का अनुमान है। लेकिन इससे कीमतों पर प्रभाव पड़ने की संभावना कम है। वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण इस धातु की कीमत कम होकर लंदन में 1,780 डॉलर के इर्द-गिर्द है। निकट भविष्य में इसकी कीमतें 2,250 डॉलर तक जा सकती हैं।
पुगाझेंती ने कहा, ‘बैकअप की क्षमता के अनुसार भारत के हरेक घर को इनवर्टर की आवश्यकता है। प्रत्येक कंप्यूटर को एक यूपीएस की जरूरत है और हर आदमी अपना वाहन चाहता है। इन सभी को लेड-एसिड बैटरी की आवश्यकता होती है। इसलिए भारत में लेड की खपत में वृध्दि होना अवश्यंभावी है।’
वैश्विक वित्तीय प्रणाली को देखते हुए बीएनपी परिबा एसए ने वर्ष 2008 के लिए लेड की कीमतों की अपनी भविष्यवाणी में 8 प्रतिशत की कटौती की है, इसका मानना है कि मांग की अपेक्षा आपूर्ति अधिक होगी। इस वर्ष लंदन मेटल एक्सचेंज पर लेड का प्रदर्शन काफी बुरा रहा है। इस साल के शुरुआत में इसकी कीमत प्रति टन लगभग 3,900 डॉलर थी जहां से इसमें नाटकीय गिरावट आई है।