भारत-सोवियत संघ के संबंधों को लेकर यह बात मजाक में कही जाती थी कि राजकपूर की फिल्में और चाय रूस में खूब बिकती हैं। 1991 के उतराद्र्ध में सोवियत संघ के विभाजन और केंद्रीय खरीद तंत्र के खत्म होने के साथ इस क्षेत्र में चाय निर्यात का दबदबा खत्म हो गया। अब फिर से 30 साल बाद रूस के यूक्रेन पर आक्रमण की वजह से चाय उद्योग अधर में है। भारतीय चाय के शीर्ष दो खरीदारों में से एक रूस जबकि दूसरा ईरान है जिनका उद्योग के कुल निर्यात में लगभग 18 प्रतिशत का योगदान है जबकि स्वतंत्र राष्ट्रों के राष्ट्रमंडल (सीआईएस) के लिहाज से यह एक-चौथाई के करीब है। 1980 के दशक में सोवियत संघ द्वारा लगभग 50 प्रतिशत तक की खरीदारी की जाती थी जो अब काफी कम है लेकिन इन बाजारों में किसी भी सेंध का असर घरेलू बाजार में देखा जा सकता है।
चाय निर्यातकों को पहले से ही युद्ध की वजह से दिक्कत महसूस हो रही है और बुकिंग के साथ लागत में बढ़ोतरी के चलते माल ढुलाई फिलहाल रूकी हुई है। दक्षिण भारत चाय निर्यातक संघ के अध्यक्ष दीपक शाह ने कहा, ‘स्टीमर लाइनों ने निर्देश दिए हैं कि वे रूस और यूक्रेन में से किसी से अधिक माल नहीं लेंगे। हमें कंटेनरों के जाने के रास्ते के बारे में भी कोई खास जानकारी नहीं मिली है। हमने यह भी सुना है कि उनकी वापसी हो सकती है जो और मुश्किलें बढ़ाएगा।’
उत्तर भारत में मध्य दिसंबर से फरवरी के मध्य तक उत्पादन रुक जाता है जबकि दक्षिण भारत में चाय के लिए यह बेहतर मौसम होता है। इस वक्त इस क्षेत्र से उत्तर भारत के लिए पर्याप्त निर्यात होता है और अधिकांश लदान का काम मई से अक्टूबर के बीच होता है। कुल चाय उत्पादन के लगभग 18 प्रतिशत में दक्षिण भारत का योगदान होता है।
भारतीय चाय निर्यातक संगठन के अध्यक्ष अंशुमन कनोडिया ने बताया कि ऐसे निर्यातक थे जो साल भर निर्यात करते थे लेकिन अब लागत आसमान छू रही है। रूस की मुद्रा रूबल में गिरावट और निर्यात पर इसके प्रभाव को लेकर भी चिंताएं बढ़ी हैं। कनोरिया ने कहा, ‘यह संभावना नहीं है कि रूस रूबल में बहुत अधिक भुगतान करने के लिए तैयार होगा।’ रूस को किया जाने वाला निर्यात, डॉलर या रुपये के भुगतान पर आधारित होता है। हालांकि, शाह ने कहा कि संगठन के कुछ सदस्यों को यूक्रेन संकट की वजह से रुपये के क्रेडिट लेटर के बावजूद दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था क्योंकि बैंकर पहले भेजे गए सामान के लिए दस्तावेजों को स्वीकार नहीं कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘निर्यातकों पर दबाव है।’ चाय उद्योग के लिए प्रतिबंध और इसका प्रभाव नया नहीं है। ईरान के निर्यातकों को रुपये-रियाल व्यापार में कमी आने से भुगतान में देरी का सामना करना पड़ रहा है।
ईरान भारत में तेल का प्रमुख आपूर्तिकर्ता था। जब 2012 में अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाए गए थे तब यूको बैंक के माध्यम से रुपये के भुगतान तंत्र के तहत द्विपक्षीय बैंकिंग व्यापार लेन-देन किए गए थे। लेकिन डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा 2019 में प्रतिबंधों के अंतिम चरण के बाद ईरान से तेल का आयात बंद करने के भारत के कदम की वजह से रुपये के फंड में कमी आने लगी। इससे ईरान के साथ सीधे भुगतान की समस्याएं बढ़ गई हैं। मैकलियोड रसेल इंडिया के निदेशक आजम मोनेम ने कहा, ‘जब तक रुपये-रियाल का व्यापार होता तब तक हमने ईरान को निर्यात किया। अब जब इसमें कमी आ गई है तब हमने अन्य विकल्प नहीं तलाश किए हैं।’
संकट के बाद चाय उत्पादकों द्वारा निर्यात में कमी आई है जबकि व्यापारी निर्यातकों ने अंतर को कम करने के लिए कदम उठाया क्योंकि उन्होंने ईरान को चाय भेजने के लिए नए मार्गों की तलाश कर रहे हैं और इसके लिए संभवत: दुबई के रास्ते का इस्तेमाल हो सकता है। भारत अब कथित तौर पर यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद प्रतिबंधों के प्रभाव से निपटने के लिए रुपये-रूबल व्यापार को मजबूत करने के विकल्प की तलाश कर रहा है। इससे भी रूस से निर्यात मांग की उम्मीदें फिर से बढ़ी हैं। एम के शाह एक्सपोट्र्स के अध्यक्ष हिमांशु शाह ने कहा, ‘अगर सरकार एक उचित तंत्र स्थापित करती है तब हम कुछ बाजारों में वापसी कर सकते हैं।’ सोवियत संघ के दिनों में, रुपया-रूबल व्यापार और राज्य खरीद तंत्र, उद्योग के लिए काफ ी मुनाफ ादायक साबित हुआ। शाह ने याद करते हुए बताया, ‘बड़े लेनदेन इस वजह से हो रहे थे क्योंकि हममें से किसी के पास डॉलर या विदेशी मुद्रा नहीं थी।’ भारत से कुल 20 करोड़ किलोग्राम निर्यात में से लगभग 10 करोड़ किलोग्राम निर्यात सोवियत संघ के लिए हुआ करता था। लेकिन सोवियत संघ के विघटन से निर्यात को झटका लगा। रूस के निर्यात में कमी की वजह सिर्फ केंद्रीय खरीद तंत्र को खत्म करना ही नहीं है बल्कि ग्राहकों की बदलती पसंद और टी बैग्स को तरजीह देने के साथ-साथ परंपरागत चाय के उत्पादन में कमी आना और वैश्विक बाजार में व्यापक मांग का बढऩा भी है।
रूस रूढि़वादी और सीटीसी बाजार का मिश्रण है। सीटीसी बाजार में चाय का प्रसंस्करण किया जाता है और इसमें भारत को लागत-प्रतिस्पर्धी केन्या और रूढि़वादी बाजार में श्रीलंका से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। शाह ने कहा, ‘रूस में विदेशी मुद्रा कम होने के कारणए केन्या के साथ.साथ श्रीलंका जैसे बाजारों पर उनकी निर्भरता कम हो सकती है क्योंकि उन्हें डॉलर मिलना मुश्किल हो जाएगा।’
निर्यात आधारित केन्या और श्रीलंका के बाजार के विपरीत, भारतीय चाय उद्योग काफ ी हद तक घरेलू बाजार की मांग को पूरा करता है। फि र भी, घरेलू मांग-आपूर्ति को संतुलित रखने के लिए निर्यात महत्वपूर्ण हैं। चाय उद्योग के अधिकारी बताते हैं कि अगर निर्यात प्रभावित होता है तो घरेलू बाजार में अधिक चाय उपलब्ध होगी और इससे अधिक आपूर्ति की स्थिति बनेगी जिससे कीमतें गिरेंगी और ऐसी स्थिति में पहले से ही संकट से गुजर रहे उद्योग पर दबाव और बढ़ेगा।
कई वर्षों से चाय की कीमतें कम हो गई हैं। आईसीआरए-एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार, चाय की कीमतों में स्थिरता आने और लागत में वृद्धि के कारण विशेष रूप से वित्त वर्ष 2015 से थोक चाय खिलाडिय़ों के मुनाफे में कमी आई है। इससे इस उद्योग की सेहत पर असर पड़ा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2013 से वित्त वर्ष 2020 तक रेटिंग में कमी की करीब 26 मिसालें थीं जबकि रेटिंग अपग्रेड के 7 मामले थे।
लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण वित्त वर्ष 2020 में कम उत्पादन के कारण कीमतों में 34 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिससे कई कंपनियों के मुनाफे में तेजी आई। उद्योग में अधिकांश का मानना है कि यह एक अलग तरह की स्थिति थी।
आईसीआरए के उपाध्यक्ष कौशिक दास ने कहा, ‘यह साल कीमत के मोर्चे पर अब तक अच्छा दिख रहा है। लगातार दो वर्षों के कम उत्पादन की वजह से उत्तर भारत में एक नए सीजन की बेहतर शुरुआत होने की संभावना है।’ कुल चाय उत्पादन में उत्तर भारत की हिस्सेदारी लगभग 82 प्रतिशत है।
क्या रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से सभी उम्मीदों पर लगाम लग जाएगी, आमतौर पर कम निर्यात और बढ़ती तेल की कीमतों के साथ इनपुट लागत में वृद्धि की वजह से कोई भी ऐसा ही अनुमान लगा पा रहा है। उद्योग केवल उम्मीद कर सकता है कि रूस चाय बनाए, युद्ध की स्थिति न पैदा करे।
