एशिया की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल पाट्र्स की मंडी का आकार इन दिनों छोटा होता जा रहा है। सालाना लगभग
दिल्ली के कश्मीरी गेट स्थित लगभग 10 हजार से अधिक ऑटोमोबाइल्स पाट्र्स की दुकानों के इस बाजार में बीते दो से तीन सालों के दौरान 35 फीसदी तक की गिरावट आई है। इस बाजार से होने वाले निर्यात में भी बीते सालों में 30 से 40 फीसदी तक की कमी आई है। यहां के कारोबारी इस गिरावट के लिए ऑटोमोबाइल्स पाट्र्स के उत्पादन की लागत बढ़ने, नई कारों से पांच साल तक किसी प्रकार की मांग नहीं निकलने व सरकार की नीतियों को जिम्मेदार मानते हैं। गौरतलब है कि घरेलू ऑटोमोबाइल्स बाजार में भी अप्रैल, 2007 से लेकर फरवरी, 2008 के दौरान 5.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
दिल्ली स्थित ऑटोमेटिव पाट्र्स मर्चेंट एसोसिएशन
(अपमा) के पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र मदान कहते हैं, ‘मात्र पांच साल पहले तक दिल्ली के इस ऑटोमोबाइल बाजार से देश का 70 फीसदी ऑटोमोबाइल बाजार कवर होता था। लेकिन गत साल हुए एक सर्वे के मुताबिक इसके बाजार में 38 से 35 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है। इसके लिए सबसे मुख्य कारण नई कारों से मांग पांच से छह साल तक नहीं निकलना है। उत्पादन की लागत में भी बेतहाशा बढ़ोतरी है जिस कारण यहां के उत्पादों व नामी कंपनियों के उत्पादों की कीमत में कोई खास अंतर नहीं रह गया है।‘
वे कहते हैं कि नई कार की वारंटी व कंपनी से मिलने वाली सर्विसिंग सुविधा के कारण पांच सालों तक उस कार के मालिक को कोई भी पार्ट नहीं खरीदना पड़ता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मारुति उद्योग को सप्लाई देने वाली क्यूएच कंपनी द्वारा निर्मित एक सस्पेंसन आर्म की कीमत 200 रुपये है। वही कश्मीरी गेट स्थित निर्माता कंपनी वेलकम एक सस्पेंसन आर्म 170 रुपये में बेचती है। ऐसे में लोग वेलकम के उत्पाद को क्यों खरीदेंगे।
अपमा के उपाध्यक्ष संजीव आहूजा कहते हैं, ‘लोहे की कीमत पिछले दो महीने के भीतर 30 रुपये प्रति किलोग्राम के मुकाबले 47 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया, उत्पाद शुल्क भी वर्तमान में 14 फीसदी है, ऐसे में लागत अधिक होना लाजिमी है।‘ यहां से यूरोप के टर्की, पोलैंड, जर्मनी, इटली व फ्रांस जैसे देशों के साथ खाड़ी के देशों में भी ऑटोमोबाइल्स पाट्र्स की आपूर्ति की जाती है।