ऑटो कल-पुर्जा निर्माता कंपनियों को चालू वित्त वर्ष में वृध्दि के आधे हो जाने की आशंका है।
ऑटोमोबाइल क्षेत्र में बढ़ती ब्याज दरों और ईंधन की कीमतों में तेज उछाल के चलते ऑटोमोबाइल की मांग में मंदी का दौर बना हुआ है, जो वृध्दि दर के कम होने की एक अहम वजह है।
ऑटो कल-पुर्जा निर्माता संघ के अध्यक्ष संजय लाब्रू का कहना है, ‘उद्योग इस साल 6 से 8 प्रतिशत की दर से वृध्दि करेगा, जबकि पहले इसके 12 से 13 प्रतिशत की दर से वृध्दि करने की उम्मीद थी।’ भारतीय रिजर्व बैंक ने 29 जुलाई को रेपो रेट को दो महीनों में तीसरी बार 8.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत कर दिया है।
बैंचमार्क दरें सात साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई हैं। बैंक ने महंगाई दर पर काबू पाने के लिए नकद आरक्षित अनुपात को 8.75 फीसद से 9 फीसद कर दिया है। रिजर्व बैंक के इस कदम ने देश के प्रमुख ऑटो कर्ज देने वाले बैंकों स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और आईसीआईसीआई बैंक के साथ-साथ अन्य बैंकों को कर्ज की दरों में इजाफा करने पर मजबूर कर दिया है। इसके बावजूद कच्चे माल की कीमतों में इजाफे का असर भी कल-पुर्जा निर्माता कंपनियों पर दिखाई दे रहा है।
यहां तक कि व्यावसायिक वाहन निर्माता कंपनी जैसे टाटा मोटर्स ने पहले ही उत्पादन में 20 प्रतिशत कटौती के संकेत दिए हैं। घटती बिक्री और डीलरों के पास मौजूदा स्टॉक को देखते हुए अगर कार निर्माता उत्पादन में कटौती का कोई फैसला लें तो इसमें हैरत की बात नहीं है।
विश्लेषकों के अनुमान के अनुसार कार और व्यावसायिक वहानों की बिक्री इस साल मंदी ही रहने वाली है, जिसे देखते हुए ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए यह साल काफी मुश्किल रहेगा। ट्रैक्टरों की बिक्री में भी गिरावट आ सकती है। पिछली तिमाही में 300 से 400 अंक मार्जिन में गिरावट देख चुकी कल-पुर्जा निर्माता कंपनियां भी बाजार में बने रहने के लिए संघर्ष कर रही हैं।
इन कंपनियों पर पहले ही कच्चे माल की बढ़ती लागत का बोझ बढ़ रहा है। कल-पुर्जे बनाने वाली कंपनियां भी अहम कच्चे माल की बढ़ती कीमतों का बोझ कुछ हद तक उठा रही हैं, और यह बोझ अलग-अलग कल-पुर्जों के लिए अलग-अलग है। उदाहरण के लिए अगर किसी कच्चे माल की कीमत 100 प्रतिशत बढ़ी है तो, उन्हें 80 प्रतिशत की रियायत मिलती है और बाकी का बोझ उन्हें खुद उठाना पड़ रहा है।
व्हील्स इंडिया के प्रबंध निदेशक श्रीवत्स राम का कहना है, ‘जब मात्रा नहीं बढ़ती तब हमें बढ़ती लागत का बोझ उठाना पड़ता है। बाजार में भी वृध्दि नहीं होने पर तो हमारे लिए अपने निवेशित पैसे को हासिल करना भी मुश्किल हो जाता है।’
मंदी के दौर से उभरने के लिए सेटको ऑटोमोबाइल जैसी कल-पुर्जा निर्माता कंपनियां निर्यात और बिक्री के बाद के बाजार को बढ़ावा दे रही हैं। सेटको के मुख्य प्रबंध निदेशक हरीश सेठ का कहना है, ‘पुराने पुर्जों को बदल कर नए पुर्जे लगाने का बाजार असली पुर्जे बनाने वाली कंपनियों (ओईएम) से 7-8 गुना अधिक बढ़ा है।’
लाब्रू जो शीट ग्लास बनाने वाली कंपनी असाही इंडिया ग्लास के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी भी हैं, का कहना है, ‘मंदी के दौर में ओईएम आउसोर्सिंग को बढ़ावा दे रही हैं। वैश्विक ओईएम के अंतरराष्ट्रीय खरीदारी के कार्यालय तेजी से काम कर रहे हैं। पिछले साल हमने लगभग 16 हजार करोड़ रुपये के कल-पुर्जे निर्यात किए थे।’