इंदौर के पास एक जगह है बरवानी। वहां के राजघराने के सदस्य मानवेंद्र सिंह ने एक मुश्किल, लेकिन काफी शानदार काम अपने सिर ले लिया था।
विंटेज (पुरानी) और क्लासिक कारें के एक्सपर्ट, उनके रखरखाव में माहिर और इस बाबत किताब लिख चुके यह मशहूर शख्स मुल्क की पहली कॉन्कर्स डी’एलेगैंस में लोगों की जिज्ञासा को शांत करने में जुटा हुआ था।
यह शाही गाड़ियां की एक ऐसी प्रदर्शनी होती है, जहां उनके मालिकों को उनकी कारों के लुक्स के आधार पर विजेता चुना जाता है। इस नायाब प्रदर्शनी में उन्होंने मुल्क भर में छितरी कम से कम 60 बेहतरीन कारों को शामिल किया था। अब आप भी सोच रहे होंगे कि मुल्क में तो काफी सारी नायाब विटेंज कारें हैं। तो इसमें से केवल 60 को उन्होंने कैसे चुना होगा?
असल में, यहीं जरूरत होती है अक्ल की। मानवेंद्र सिंह ने वाकई अपनी अक्ल काफी अच्छा प्रदर्शन किया और इसी वजह से यह प्रदर्शनी इतनी कामयाब हो पाई। एक और दो नवंबर को मुंबई के ट्रफ क्लब में हुई इस प्रदर्शनी में कारों को मुल्क के अलग-अलग हिस्सों से लाया था। वहां उन कारों के लुक्स के आधार पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्लेषकों ने नंबर दिए।
उस प्रदर्शनी में हिस्से लेने के लिए आईं 59 कारें में से हरेक की एक कहानी थी। वह भी एक जबरदस्त रोमांचक गाथा। इसलिए उन बेहतरीन कारों में विजेताओं का चुनना जजों के लिए एक बहुत ही मुश्किल काम था। लेकिन उन्होंने इस बेहद मुश्किल काम को अंजाम दिया और ये ही अहम विजेताओं की लिस्ट :
बेस्ट ऑफ शो : 1939 की डेलाहाय 135 एमएस, जिसके मालिक जोधपुर के महाराजा दिलीप सिंहजी थे।
बेस्ट ऑफ क्लास- क्लासिक
1. 1924 की 20एचपी की रॉल्स-रॉयस, जिसे खरीदा था मेवाड़ के श्रीजी अरविंद सिंहजी
2. 1935 की रॉल्स-रॉयस फैंटम ॥ कॉन्टिनेंटल, जिसके मालिक थे मुंबई के अमीर अली जेथा
3. 1930 की लांसिया डिलैंबडा, जिसके मालिक थे मुंबई के हेमंत कुमार रुइया
पोस्ट-वार क्लासिक (1946 से 1959) : 1952 की कार्डिलैक सिरीज 62, जिसे खरीदा था नई दिल्ली के दिलजीत टीटू ने
रोडस्टर (1936-46 के बीच बने कनवर्टिबल्स) : 1949 की हेली-वेस्टलैंड
एग्जॉटिक (खासतौर पर फिर से बनाई गईं गाड़ियां) : 1923 की 20एचपी की ताकत वाली रॉल्स-रॉयस, जिसे खरीदा था भुवनेश्वर के धर्मादित्य पटनायक।
हालांकि, जिन कारों को पुरस्कार मिला, उनमें से हरेक उसकी पूरी हकदार थीं। फिर भी हमने उस शो में हिस्सा लेने वाली पांच कारों की एक अलग से लिस्ट बनाने की ठानी। वे गाड़ियां हमारे दिल को भा गईं थीं। उनमें से कुछ तो पहले से ही विजेताओं की लिस्ट में शामिल हैं। ये रही हमारी पसंद की कारें :
1956 मर्सिडीज-बेंज 300 एसएल रोडस्टर
मालिक : गोंडल के महाराज ज्योतेंद्र सिंहजी
क्या हो अगर आपके पास दो जगुआर एक्सके150 कारें हों और उनसे मुकाबले करने लायक कोई दूसरी कार न हो? तब, आप उस वक्त की सबसे जबरदस्त रोडस्टर को खरीदते हैं और फिर जुगआर से रेस लगाते हैं।
वैसे, गुजरात की एक रियासत, गोंडल के महाराज ने ऐसा कुछ सोचकर यह जबरदस्त कार नहीं खरीदी थी, जिसे आज क्लासिक का तमगा मिल चुका है। हकीकत तो है कि इस शाही कार में वह अक्सर शोलावरम और बैरकपुर में घूमने के लिए निकल जाते थे। उन्होंने इस कार को इतना चलाया था कि इसकी रेसिंग इंजन की कई-कई बार मरम्मत करवानी पड़ी थी।
1949 हेली-वेस्टलैंड
मालिक : मुंबई के पी.पी. एशर
इस गाड़ी को खरीदने के पीछे भी एक बड़ी मजेदार कहानी छुपी हुई है। गुजरात के ही एक दूसरी रियासत, इदर के महाराजा को प्लेन उड़ाने का बड़ा शौक था। जब उन्हें पता लगा कि प्लेन बनाने वाली कंपनी वेस्टलैंड अब रेसिंग ड्राइवर डोनाल्ड हेली के साथ मिलकर कार बनाने की योजना बना रही है, तो उन्होंने फौरन अपने लिए एक बुक करवा ली।
इस कार में हेली की ताकतवर इंजन के साथ हल्की बॉडी के मेल के प्रति मोहब्बत साफ नजर आती है। वजन को कम रखने के लिए हेली-वेस्टलैंड में अल्युमिनेयम के कल-पुर्जों का इस्तेमाल किया गया है।
दूसरी तरफ, इसका 104 बीएचपी का 2.4 लीटर का रेली इनलाइन फोर इंजन इस कार को जबरदस्त ताकत देती है। मजे की बात यह है कि इस तरह की केवल 64 कारें बनीं थीं। यह इस मॉडल की देश में इकलौती कार है। जब इसे इसके मौजूदा मालिक एशर ने खरीदा था, तो इसकी हालत खटारा हो चुकी थी।
1937 बेंटले एमएक्स सिरीज
मालकिन : जयपुर की राजमाता
यह शायद ऐसी पहली बेंटले कार थी जिसमें डब्ल्यू. ओ. बेंटले जैसी कोई बात नजर नहीं आई। 1935 में उन्होंने बेंटले की मालिक कंपनी रॉल्स रॉयसी को छोड़कर लागोंडा के साथ जुड़ गए। इस कार में 4257 सीसी का इंजन था और इस शाही कार में 125 बीएचपी की ताकत भी थी। जब यह कार अपनी तेज रफ्तार में चलती थी तो मानो हवा से बाते कर रही हो।
यकीनन इसकी खासियत का अंदाजा आप इससे ही लगा सकते हैं। दरअसल यह 4.25 लीटर की क्षमता वाली 202 एमआर और एमएक्स सिरीज की बेंटले कार थी। बेंटले की 4.25 लीटर इंजन की सिर्फ 1,234 कार बनाई गई जिसमें से 202 कारें एमआर और एमएक्स सिरीज की थी।
इस सिरीज की कार में जबरदस्त गियरबॉक्स, चौड़े टायर और बहुत अलग तरह का स्टियरिंग सेटअप होता था। जयपुर का यह बेंटले कभी बदला हुआ नजर नहीं आया। कार के पहिए के पास उभरता हुआ शेप दिया गया था जो कार की बॉडी के स्ट्रीमलाइन शेप को बेहतर ढंग से उभारता था।
1939 डैमलर डीबी 18 स्पोटर्स टूअरर
मालिक : विवेक गोयनका
इस शानदार कार की बॉडी को डिजाइन किया था बार्कर ने और यह एक बेहद अनूठी स्पोर्टस कार थी। डैमलर डीबी 18 स्पोटर्स टूअरर कार तो अब आपको मिल ही नहीं सकती। दरअसल यह इस तरह की डिजाइन की गई उन दो कारों में से एक है जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इंग्लैंड के औद्योगिक इलाकों पर जर्मनी के जबरदस्त कहर के बावजूद बच गई थी।
डीबी18 के मॉडल की कार 25 से ज्यादा नहीं बनाई गई थी। इस कार को आगा खान के बेटे प्रिंस अली खान के लिए बाहर से मंगाया गया था। हालांकि इस कार के सामने वाले हिस्से की सीट पुराने डिजाइन का ही है लेकिन इसकी पिछली सीट पर भी आराम से बैठने के लिए जगह मौजूद है। इस डीबी 18 कार में 2.5 लीटर का इंजन है और इसमें 70 बीएचपी की ताकत भी है।
1939 डेलाहाय 135 एमएस
मालिक : जोधपुर के महाराज दिलीप सिंहजी
इस शानदार कार को देखकर आपको जरा भी आश्चर्य नहीं होगा कि इस प्रदर्शनी में इसने बेस्ट ऑफ शो की बाजी आखिरकार कैसे मार ली। फ्रेंच स्टाइल में बनी यह शानदार कार आपको बेहद आक र्षित करती है। इस कार को भारत में एक फ्रांसीसी नागरिक लेकर आया था और बाद में यह मुंबई के एक ऑटो डीलर के हाथों में चला गया।
जोधपुर के महाराज हनुवंत सिंहजी ने इसे उस डीलर से खरीदा था और उन्होंने इस कार को अपने बेटे उम्मैद सिंहजी को सौंप दिया। लेकिन उम्मैद सिंहजी की चाहत एक जीप थी और उनके भाई के पास बेहद शानदार जीप थी।
उन्होंने अपने भाई को यह सूचना दी कि वे अपनी स्पोर्टसकार को उनके लिए भेज रहे हैं लेकिन वे बदले में उनकी शानदार जीप चाहते हैं। उसके बाद इस शाही कार के मालिक बने दिलीप सिंहजी। पूरी दुनिया में अब ऐसी शानदार कार केवल नौ ही बची हुई है।