जब आपके सिर पर देश के सबसे सफल एसयूवी को लॉन्च करने का ताज हो तो स्वाभाविक है कि हर कोई उसी के बारे में बात करना चाहेगा। ऐसा ही कुछ हो रहा है महिंद्रा एंड महिंद्रा के कर्ता
लोग–बाग उनसे नए स्कॉर्पियो मॉडल की स्पीड, माइलेज, उसमें किए गए बदलावों और उसके परफॉर्मेंस के बारे में पूछना चाहते हैं। खुद महिंद्रा भी परफॉर्मेंस के बारे में बात करना चाहते हैं, लेकिन बिल्कुल अलग तरीके से।
उनका कहना है कि दिल्ली से गुलाबी ठंड की रवानगी के बीच तेज होती धूप में सूट में खड़ा रहना किसी तंदूर में खड़े रहने के बराबर है। इसलिए उन्होंने फोटोग्राफरों को उनकी तस्वीर खींचने से साफ इनकार कर दिया। मुझे बार
–बार चेता गया था कि मैं जो घंटे भर का वक्त उनके साथ बिताने जा रहा हूं, उस दौरान केवल थिएटर पर ही बात की जाए, जिसके लिए हाल ही में महिंद्रा एक्सीलेंस एन थिएटर पुरस्कारों की घोषणा की गई है।
लेकिन जब मैंने मुद्दे पर हट उनके निजी जिंदगी में ताक
–झांक करने की कोशिश की तो उन्हें फौरन मेरी उड़ान पर लगाम कस दी। उनका कहना था, ‘मैं इन लाइफस्टाइल इंटरव्यूओं से तंग आ गया हूं। मुझे बड़ी चिढ़ होती है जब मुझे से कोई पत्रकार यह पूछता है कि आपकी शर्ट कहां से ली गई? आपका सूट कितने का है?’
हालांकि
, लाइफस्टाइल पत्रकारिता से इतनी चिढ़ होने के बावजूद वह खुद को उनसे ज्यादा दूर नहीं कर सकते हैं। क्यों? उनकी श्रीमती जी यानी अनुराधा महिंद्रा दो–दो लाइफस्टाइल मैगजीन जो निकलती हैं। प्रसिध्द विदेश पत्रिका ‘रोलिंग स्टोन‘ का भारतीय संस्करण निकालने का भी श्रेय उन्हीं को जाता है।
इस मुद्दे पर जब बात आई तब जाकर आखिरकार उन्होंने मुझे उनकी निजी जिंदगी की छोटी सी झलक दी। उन्होंने कहा कि
,’मेरी मानें तो हम सभी मिडिल एज रॉकर हैं।‘ उन्होंने हमें पुरानी तस्वीरों को जुटाने के शौक के बारे में भी बताया। उन्होंने हमें कोलकाता की 20वीं सदी की शुरुआत से लेकर 21वीं की शुरुआत तक की तस्वीरें दिखाई, जिन्हें उन्होंने मुंबई के एक एंटीक शॉप से खरीदा था।
पुरानी तस्वीरों में से उनकी मनपसंद तस्वीर के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने हंसते हुए बताया कि,’मेरी पत्नी ने हमारे बाथरूम में पारसी बॉडीबिल्डरों की तीन तस्वीरें लगाईं हैं। वही मेरी मनपंसद है।‘ वैसे, वह हमारी मुलाकात के एजेंडे के हटकर पूछे गए अधिकतर सवालों को टाल गए।
अपनी एसयूवी गाड़ियों की तरह आनंद महिंद्रा भी जहां जाते हैं
, बस छा जाते हैं। वह अपनी राय को काफी बेबाकी से रखते हैं, जो सोच–समझ कर तैयार की जाती है। वैसे, हम उन रायों को लफ्जों की शक्ल नहीं दे सकते क्योंकि वे बातें ऑफ द रिकॉर्ड कही गई हैं। हमें यहां महिंद्रा ग्रुप के महिंद्रा एक्सीलेंस एन थिएटर अवार्ड के बारे में बात करने की छूट दी गई। इस सम्मान का असल मकसद थिएटर कला को बढ़ावा देना है।
उनका कहना है कि,’हम अपनी छवि एक जिम्मेदार परोपकारी संस्था के रूप में बनाना चाहते हैं। लेकिन हमें यह भी याद रखना है कि जो पैसे हम खर्च कर रहे हैं, वह असल में हमारे शेयर होल्डरों के हैं।‘
वैसे
, यह कोई पहली बार नहीं है, जब महिंद्रा समूह ने परोपकार दिखाया हो। पिछले 60 सालों से महिंद्रा समूह वजीफे दे रही है। हुनरमंद लोगों को उचित मंच मुहैया करवा रही है। अब आनंद महिंद्रा क्या करना चाहते हैं? उनका जवाब था,’मैं अब कोई बॉलीवुड अवार्ड नहीं शुरू करना चाहता।‘
आखिर यह थिएटर पर इस अवार्ड को शुरू करने का आइडिया उन्हें आया कहां से था। इस पर महिंद्रा समूह के इस कर्ता–धर्ता ने बताया कि,’दरअसल, यह आइडिया रवि दुबे ने मुझे एक समारोह के दौरान दिया था। उसके बाद से हमसे कई थिएटर ग्रुप जुड़ गए हैं। वैसे अब भी हमें और भी कई लोगों से जुड़ना है। हम पूरे भारत में अपनी जगह बनानी है।
आज अगर रवि दुबे मुझे इस अवार्ड के लिए और रकम मांगेंगे तो उसे मैं प्राथमिकता दूंगा।‘ एक ऐसे समय जब फिल्मों के सामने थिएटर घुटने टेक चुका है, आनंद महिंद्रा की यह हिम्मत काबिले तारिफ है। उनके मुताबिक थिएटर तो एक इंसानी माध्यम है।