विश्लेषकों की राय में आगामी 7 फरवरी को मौद्रिक नीति समिति की बैठक में दरें रहेंगी अपरिवर्तित, कैलेंडर वर्ष 2018 के लिए आरबीआई की संभावित नीति के मिलेंगे अहम संकेत
आगामी 7 फरवरी को मौद्रिक नीति की घोषणा विश्लेषकों के लिए हाल के दिनों की एक महत्त्वपूर्ण घटनाओं में एक होगी। दरअसल इस मौद्रिक नीति के नतीजे से आने वाले समय में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के संभावित कदमों की रूप-रेखा का अंदाजा लग जाएगा। बजट पेश होने के करीब एक सप्ताह बाद मौद्रिक नीति से जुड़ी घोषणा से दरों में कटौती का सिलसिला थम सकता है, साथ ही यह आने वाले दिनों में केंद्रीय बैंक के सतर्क रुख का भी संकेत देगा।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने 12 अर्थशास्त्रियों और खजांचियों (ट्रेजरर) से बात की, जिनमें मौद्रिक नीति की घोषणा के नतीजे पर सभी एकमत थे। मोटे तौर पर सभी का मानना था कि दरें अपरवर्तित रहेंगी। पूरी बहस इस बात पर टिकी थी कि क्या नीतिगत रुझान अब भी तटस्थ बना रहेगा या नीति से किस हद तक आरबीआई के सतर्क रवैये का संकेत मिलता है और आखिरी अहम बिंदु यह होगा कि आने वाले महीनों में दरों में वृद्धि होगी या नहीं।
आरबीआई ने आखिरी बार अगस्त में नीतिगत दर में 25 आधार अंक की कटौती की थी और तब से रीपो दर 6 प्रतिशत पर स्थिर है। यह बात सभी मान रहे हैं कि नीतिगत दरें एक ऐसे स्तर पर पहुंच चुकी हैं और जहां से और कमी संभव नहीं है। माना जा रहा है कि कैलेंडर वर्ष 2018 में दरें बढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाएगा।
दरें निर्धारित होने में अहम भूमिका रखने वाली महंगाई की बात करें तो यह दिसंबर में यह 5.21 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई, जो पिछले 17 महीनों का उच्चतम स्तर है। 10 साल की परिपक्वता अवधि पर बॉन्ड प्राप्तियां 7.50 प्रतिशत के स्तर पर पहुंचने से केंद्रीय बैंक के सामने एक और चुनौती पेश हो गई है। प्राप्तियों और महंगाई के बीच अंतर 230 आधार अंक तक पहुंच चुका है और भारतीय स्टेट बैंक समूह में मुख्य अर्थशास्त्री सौम्यकांति घोष का कहना है कि इतना अधिक अंतर अक्सर मुश्किल हालात में ही दिखता है।
हालांकि 2018 में नीतिगत दरों में संभावित बढ़ोतरी पर कोई राय बनाने से पहले कई विश्लेषकों ने फरवरी में नीतिगत फैसले का विश्लेषण करना मुनासिब समझा। हालांकि एक बात लगभग सभी मान रहे हैं कि कम से कम एक बार दरें तो जरूर बढ़ेंगी, लेकिन ऐसा कब होगा इस पर राय अलग-अलग थी। इस बात पर भी रुख साफ नहीं है कि बजट के बाद महंगाई सिर उठाएगी या इसकी दशा-दिशा क्या रहेगी।
बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण फैसला किया है, जिसके महंगाई पर असर पडऩे के विषय पर बहस छिड़ गई है। कुछ विश्लेषकों का यह भी कहना है कि जुलाई से केंद्रीय बैंक के लिए आधार प्रभाव खासा अनुकूल हो जाएगा, इसलिए इसके लिए दरें बढ़ाना मुश्किल नहीं होगा। बुधवार को मौद्रिक नीति समिति की घोषणा के बाद काफी चीजें स्पष्ट हो जाएंगी।
एमके ग्लोबल फाइनैंशियल सर्विसेस लिमिटेड के मुख्य अर्थशास्त्री धनंजय सिन्हा ने कहा, 'वित्तीय प्रोत्साहन और जिंसों की बढ़ती कीमतों का महंगाई पर असर होगा। इसके अलावा आगे चलकर नकदी की स्थिति भी सहज नहीं रह जाएगी और ऐसे समय में जब वैश्विक स्तर पर प्राप्तियां बढ़ रही हैं, आरबीआई सतर्क रवैैया अपनाते हुए अनुमान से पहले दरें बढ़ाना शुरू कर सकता है।' सिन्हा का मानना है कि अप्रैल में मौद्रिक नीति समिति की बैठक में दरें 25 आधार अंक बढ़ सकती हैं। बाद में दरें बढ़ने की राह और आसान हो सकती है।
केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'संभवत: हमें राजकोषीय घाटे के एक और साल से रूबरू हो रहे हैं। कच्चे तेल में तेजी से आरबीआई के पास सतर्क रवैया अपनाने के सिवा दूसरा विकल्प नहीं रह जाएगा। इससे लंबे समय तक दरों पर यथास्थिति कायम रहेगी।' सबनवीस दर बढऩे की उम्मीद तो कर रहे हैं, लेकिन उनके अनुसार यह कच्चे तेल की कीमतों पर निर्भर करेगा। इंडसइंड बैंक में मुख्य अर्थशास्त्री गौरव कपूर ने कहा, 'एमएसपी को नजदअंदाज नहीं किया जा सकता और इस पर सभी की पैनी नजर रहेगी। तेल जरूर चढ़ रहा है, लेकिन सर्दियों के बाद यह एक स्तर पर थम सकता है, वहीं दूसरी तरफ वृद्धि दर भी तेज हो सकती है।'
हालांकि कुछ अर्थशास्त्रियों की नजर में कैलेंडर वर्ष 2018 में दरें बढ़ाने का कोई कारण नहीं है। एलऐंडटी फाइनैंस लिमिटेड में समूह मुख्य अर्थशास्त्री रूपा रेगे निस्तुरे कहती हैं, 'तेल की कीमतों में बहुत तेजी नहीं आई है। आम तौर पर सर्दियों की वजह से फरवरी में तेल की कीमतें बढ़ती हैं। एक अच्छी बात यह है कि अमेरिका में शेल का उत्पादन बढ़ रहा है।'
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