एफडीआई नियम हुए और उदार | |
शुभायन चक्रवर्ती / नई दिल्ली 01 10, 2018 | | | | |
विमानन, एकल ब्रांड रिटेल और निर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नियमों में ढील
► एकल ब्रांड रिटेल में स्वत: मंजूरी के जरिये 100 फीसदी एफडीआई की अनुमति
► अभी तक स्वत: मंजूरी के जरिये एकल ब्रांड में 49 फीसदी एफडीआई की ही थी अनुमति
► एयर इंडिया में अब विदेशी निवेशक भी खरीद सकेंगे 49 फीसदी तक हिस्सा
► एकल ब्रांड रिटेल में एफडीआई को आसान बनाने से कई अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों की भारत में हो सकती है दस्तक
► निर्माण क्षेत्र की गतिविधियों और पावर एक्सचेंज में विदेशी निवेश नियमों को भी बनाया उदार
दावोस में होने वाले विश्व आर्थिक मंच से कुछ दिनों पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए विमानन, रिटेल और निर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नियमों में ढील दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावोस में दुनिया भर के मुख्य कार्याधिकारियों और राजनेताओं को भारत की क्षमता प्रदर्शित कर सकते हैं, ऐसे में यह कदम महत्त्वपूर्ण हो सकता है। सरकार ने पिछले तीन साल में चौथी बार एफडीआई नियमों में बदलाव किया है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सार्वजनिक क्षेत्र की विमानन कंपनी एयर इंडिया में एफडीआई की मंजूरी दे दी। इसके तहत विदेशी विमानन कंपनी या कोई अन्य विदेशी निवेशक एयर इंडिया में 49 फीसदी हिस्सेदारी ले सकता है। इस कदम से सरकार के लिए एयर इंडिया में अपनी हिस्सेदारी कम करने की योजना में मदद मिल सकती है। सरकार आम बजट के बाद एयर इंडिया के लिए अभिरुचि पत्र आमंत्रित कर सकती है। हालांकि संसदीय समिति ने कम से कम पांच वर्षों के लिए एयर इंडिया के विनिवेश को टालने की सिफारिश की है।
सरकार ने अंतरराष्ट्रीय एकल ब्रांड खुदरा कंपनियों के लिए भारत में कारोबार स्थापित करने के नियम को भी आसान बना दिया है। एकल ब्रांड रिटेल में 2011 में 100 फीसदी एफडीआई की अनुमति दी गई थी लेकिन अब वे बिना पूर्व मंजूरी के स्वत: मंजूरी से 100 फीसदी निवेश कर भारत में कारोबार शुरू कर सकते हैं। स्वीडन की फर्निचर कंपनी आइकिया एकल ब्रांड रिटेल क्षेत्र में भारत की अब तक की सबसे बड़ी निवेशक है और उसने देश में स्टोर खोलने के लिए 10,500 करोड़ रुपये निवेश का वादा किया है। अन्य प्रमुख अंतरराष्ट्रीय एकल ब्रांड रिटेलरों - एचऐंडएम ने 100 फीसदी एफडीआई के साथ भारत आई थी, वहीं जारा और मार्क ऐंड स्पेंसर्स संयुक्त उपक्रम के जरिये भारत आई थी।
आईफोन विनिर्माता ऐपल स्थानीय आपूर्ति नियमों की अड़चन की वजह से अभी तक देश में स्टोर नहीं शुरू कर पाई है। अब तक एकल ब्रांड में स्वत: मंजूरी के जरिये केवल 49 फीसदी एफडीआई की ही अनुमति थी और इससे अधिक निवेश के लिए सरकार से अनुमति लेनी होती थी। नियम में बदलाव से भारत के तेजी से बढ़ते रिटेल क्षेत्र में विदेशी ब्रांड आकर्षित हो सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि विकसित देशों में कई अंतरराष्ट्रीय ब्रांड नियामकीय मंजूरियों के लिए इंतजार करने के आदि नहीं हैं। ऐसे में नए नियम से भारत में एफडीआई की धारणा पर अच्छा असर पड़ेगा। लॉ फर्म खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर रवींद्र झुनझुनवाला ने कहा, 'हम उम्मीद करते हैं कि एकल ब्रांड रिटेल में एफडीआई में तेजी आएगी, क्योंकि इसके लिए अब नियामकीय जांच और मंजूरी से नहीं गुजरना होगा।' सरकार ने विदेशी निवेश संवद्र्घन बोर्ड को खत्म कर दिया था। उसके बाद अगर एफडीआई के किसी प्रस्ताव को सरकारी मंजूरी की जरूरत पड़ती थी तो संबंधित मंत्रालय इससे निपटता था। औद्योगिक नीति एवं संवद्र्घन विभाग खुदरा व्यापार से जुड़े प्रस्तावों को मंजूरी देने लिए नोडल एजेंसी था। अब कंपनी को केवल इतना बताना होगा कि वह निवेश करना चाहती है।
फैशन क्षेत्र की दिग्गज कंपनी एच ऐंड एम तथा फर्नीचर कंपनी आइकिया ने 30 फीसदी सामान स्थानीय बाजार से लेने की अनिवार्यता पर आपत्ति जताई थी। सरकार ने अब इन प्रावधानों को सरल बना दिया है। अब अगर कोई कंपनी शुरुआती 5 साल के दौरान अपने वैश्विक कारोबार के लिए भारत से सामान लेती है तो उसके लिए इस शर्त में राहत दी जाएगी। वाणिज्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि इससे मोबाइल बनाने वाली कंपनी ऐपल दौड़ी-दौड़ी भारत आ जाएगी क्योंकि अब भी मोबाइल के अधिकांश हिस्से भारत में नहीं बनते हैं।
इससे छोटे खुदरा व्यापारियों के बुरी तरह प्रभावित होने की आशंका है और यही वजह है कि कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) ने इसका विरोध किया है। सीएआईटी के राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, 'इससे देश में खुदरा कारोबार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रवेश आसान हो जाएगा और यह भाजपा के चुनावी वादे के भी खिलाफ है।' उन्होंने कहा कि खुदरा कारोबार के कल्याण, उन्नयन और आधुनिकीकरण के लिए नीतियां बनाने के बजाय सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों का रास्ता आसान बनाने में लगी है।
सरकार ने साथ ही विदेशी विमानन कंपनियों को एयर इंडिया में 49 फीसदी तक निवेश करने की अनुमति दे दी। एयर इंडिया के विनिवेश की कोशिशों पर पहले कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी लेकिन बुधवार को सरकार ने साफ किया कि इसका नियंत्रण किसी भारतीय के पास ही रहेगा।
विमानन क्षेत्र की सलाहकार कंपनी सीएपीए का कहना है कि अनुभवी रणनीतिक साझेदार के बिना विमानन क्षेत्र से बाहर की कोई भी भारतीय कंपनी एयर इंडिया में निवेश नहीं करेगी। विदेशी विमानन कंपनियों को अनुमति देने से एयर इंडिया के लिए बोलीकर्ताओं की संख्या बढ़ेगी और साथ ही इसका मूल्यांकन भी बढ़ेगा। लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक वित्त मंत्रालय की पहल पर यह कदम उठाया गया है। उसे उम्मीद है कि इससे राजकोषीय घाटा कम करने में मदद मिलेगी।
सरकार ने साथ ही स्पष्ट किया है कि रियल एस्टेट ब्रोकरेज सर्विसेज रियल एस्टेट कारोबार नहीं है और इस क्षेत्र में ऑटोमैटिक रूट से 100 फीसदी एफडीआई किया जा सकता है। इस कदम से समूचे निर्माण विकास क्षेत्र में हलचल बढऩे के आसार हैं और बहुराष्ट्रीय ब्रोकर फर्में भी इसमें उतर सकती हैं। विदेशी निवेशकों को प्राथमिक बाजार के जरिये पावर एक्सचेंज में निवेश की इजाजत दी गई है। अभी तक यह सीमा 49 फीसदी थी। देश में इस समय दो पावर एक्सचेंज हैं।
|