► बॉन्डों का दर्जा गैर एसएलआर का होगा ► नहीं हो सकेगी द्वितीयक बाजार में खरीद फरोख्त ► राजकोषीय घाटे पर नहीं पड़ेगा असर
वित्त मंत्रालय ने सरकारी बैंकों के लिए पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड जारी करने के वास्ते संसद से इस वित्त वर्ष के दौरान 80 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने की अनुमति मांगी है। सरकार ने इन बैंकों के लिए एक लाख 35 हजार करोड़ रुपये के पुनपूर्जींकरण बॉन्ड जारी करने की योजना बनाई है। वरिष्ठï सरकारी अधिकारियों ने बताया कि प्रस्तावित पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड का गैर सांविधिक नकदी अनुपात (एसएलआर) का दर्जा होगा और इनकी द्वितीयक बाजारों में खरीद फरोख्त नहीं की जाएगी। इस साल 31 मार्च से पहले बैंकों में 80 हजार करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्य सभा में कहा, 'इसके पीछे सरकार की मंशा यह है कि विकास को समर्थन देने की बैंकों की क्षमता प्रभावित न हो। पिछली सरकार के दौरान सरकारी बैंकों के बेतरतीब ढंग से कर्ज देने के कारण बैंकों की आर्थिक विकास को समर्थन देने की क्षमता प्रभावित हुई है। इससे निजी निवेश भी प्रभावित हुआ है।' सरकार ने 2017-18 के लिए पूरक अनुदान मांगों की तीसरी किस्त के रूप में 80 हजार करोड़ रुपए मांगे हैं। वित्त मंत्रालय के एक दस्तावेज में कहा कि सरकारी प्रतिभूतियों के जरिये सरकारी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए अतिरिक्त खर्च के रूप में यह मांग की गई है। इस अतिरिक्त खर्च की भरपाई बैंकों को प्रतिभूति जारी करने से मिलने वाले 80 हजार करोड़ रुपये से होगी। इस तरह सरकार की कोई नकदी खर्च नहीं होगी।
सरकार बैंकों को जितनी राशि के बॉन्ड जारी करेगी, बैंकों में उतनी ही राशि के बराबर हिस्सेदारी लेगी। राजकोषीय घाटे की गणना करते समय इन बॉन्डों को शामिल नहीं किया जाएगा जिससे पहले से दबाव झेल रहे राजकोषीय घाटे पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। एसएलआर जमाओं का एक हिस्सा होता है जिसे बैंकों को सरकार प्रतिभूतियों में निवेश करना होता है। एसएलआर का दर्जा मिलने से बॉन्ड की द्वितीयक बाजार में खरीद फरोख्त की जा सकती है।
सरकार इस वित्त वर्ष और अगले वित्त वर्ष के दौरान एक लाख 35 हजार करोड़ रुपये के पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड जारी करेगी। यह सरकारी बैंकों की दो लाख 11 हजार करोड़ रुपये की पुनर्पूंजीकरण योजना का हिस्सा है। पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड के अलावा सरकार की इस वर्ष 180 अरब रुपये और अगले वर्ष 580 अरब रुपये बाजार से जुटाने की योजना है।सरकार ने इस योजना के बारे में अभी कोई घोषणा नहीं की है लेकिन कुछ मानकों के आधार पर बैंकों को पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड आवंटित किए जाएंगे। ऐसी संभावना है कि कमजोर बैंकों को केवल प्रावधान की जरूरतों के लिए पूंजी दी जाएगी जबकि मजबूत बैंकों को आगे कर्ज देने के लिए भी पूंजी मुहैया की जाएगी।
किस बैंक को कितनी पूंजी मिलेगी, यह इस बात पर निर्भर करेगी कि उसने फंसे हुए कर्ज की समस्या से निपटने के लिए क्या कदम उठाए हैं, दिवालिया कानून में भेजे गए मामलों की क्या प्रगति है और उनके प्रावधान कितने कारगर हैं। जैसा कि बिज़नेस स्टैंडर्ड ने पहले बताया था कि बैंकों को दिवालिया कानून के तहत राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट में भेजे गए मामलों के अलावा अपने फंसे कर्ज का एक छोटा सा हिस्सा बट्टïे खाते में डालना पड़ सकता है। देश के बैंकों का कुल फंसा कर्ज मार्च 2015 के 2 लाख 75 हजार करऌोड़ रुपये की तुलना में जून 2017 में बढ़कर 7 लाख 33 हजार करोड़ रुपये पहुंच चुका था।
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