उपभोक्ता उत्पाद कंपनियों को नए वर्ष में अच्छी बिक्री की उम्मीद | |
देव चटर्जी / मुंबई 12 28, 2017 | | | | |
देश का टिकाऊ उपभोक्ता सामान उद्योग 2018 में भारी बिक्री की उम्मीद कर रहा है। उद्योग का मानना है कि आयातित उपभोक्ता सामान पर सीमा शुल्क में बढ़ोतरी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के दोहरे असर से उसकी बिक्री में इजाफा होगा। गौरतलब है कि जीएसटी से उद्योग की लागत में काफी कमी आई है। सरकार ने 15 दिसंबर से विदेश मे बने टेलीविजन सेट और सेट टॉप बॉक्सों पर सीमा शुल्क बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया है। सरकार की इस पहल से ऐपल जैसी वैश्विक कंपनियों के लिए कीमतों में बढ़ोतरी जरूरी हो गई है, जो विदेश में सामान का उत्पादन करती हैं। हालांकि इससे एलजी, सैमसंग, वीडियोकॉन और डिक्सन जैसी घरेलू स्तर पर विनिर्माण करने वाली कंपनियों को बड़ा सहारा मिला है, जिन्हें 'मेक इन इंडिया' के तहत क्षमता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
उद्योग के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, 'हम 2018 के लिए बिक्री और मार्केटिंग की रणनीति बना रहे हैं क्योंकि हमारा मानना है कि अगले साल से स्थितियों में सुधार आएगा। बुरा दौर बीत चुका है। यह मौका तीन साल तक क्षमता के कम उपयोग के बाद आ रहा है।' उन्होंने कहा, 'नोटबंदी के दुष्प्रभाव 2017 में भी बने रहे।' आईआईपी के अक्टूबर के आंकड़ों के मुताबिक टिकाऊ उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियों की वृद्धि लगातार दूसरे महीने ऋणात्मक रही। यह ऋणात्मक 6.9 फीसदी रही, जो सुस्त त्योहारी मांग और अर्थव्यवस्था में कमजोर मांग को दर्शाती है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा कि जीएसटी लागू होने से उपभोक्ता उत्पाद कंपनियों की गोदाम लागत 50 फीसदी कम हो जाएगी। टिकाऊ उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियों के देशभर में गोदामों की संख्या घटकर 10-12 पर आ जाएगी, जो इस समय 25 से 30 है। इसका एलजी, सैमसंग और वीडियोकॉन को अपनी बिक्री बढ़ाने में फायदा मिलेगा। मॉर्गन स्टैनली के मुताबिक 2018 में निजी पूंजीगत व्यय में सुधार होगा। ऐसा छह साल में पहली बार होगा। इसकी वजह यह है कि कुल मांग सुधर रही है, जिससे कंपनियों की क्षमता के उपयोग में बढ़ोतरी होगी। मॉर्गन स्टैनली के एक विश्लेषक ने कहा, कंपनियों की बैलेंस शीट के फंडामेंटल सुधर रहे हैं।
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