सख्त प्रावधान से ही छद्म की खुलेंगी पहचान | सुदीप्त दे / February 19, 2017 | | | | |
आर्थिक लेनदेन में होने वाली गड़बडिय़ों को रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों के बीच सरकार की नजर अब उन छद्म कंपनियों पर टिकी है जो काले धन को सफेद करने और कर-चोरी के लिए जरिया बनाई जाती हैं। सरकारी एजेंसियों के सामने यह बड़ी चुनौती है कि इन छद्म कंपनियों के नाम पर कारोबार करने वाले असली लोगों की पहचान सुनिश्चित की जा सके। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की तरफ से जारी एक विज्ञप्ति के मुताबिक देश भर में पंजीकृत 15 लाख कंपनियों में से केवल छह लाख कंपनियां ही अपने हिसाब-किताब का सालाना ब्योरा देती हैं। चुनौती यह है कि वित्तीय लेनदेन का ब्योरा नहीं देने वाली कंपनियों से सही आंकड़े जुटाए जाएं।
दरअसल भारत में कंपनी का संचालन कर रहे किसी व्यक्ति को अपनी कंपनी के आर्थिक स्वामित्व के बारे में जानकारी देना जरूरी नहीं होता है। खेतान ऐंड कंपनी के प्रमुख सहयोगी विवेक श्रीराम कहते हैं, 'इसकी वजह से ऐसे लोगों के लिए पकड़ में आए बगैर कई कंपनियों का गठन कर पाना खासा आसान हो जाता है।' इससे छद्म कंपनियों के परिचालन की जांच कर पाना काफी थकाऊ और लंबी प्रक्रिया हो जाती है। कोचर ऐंड कंपनी के साझेदार चंद्रशेखर तम्पी कहते हैं, 'छद्म कंपनियों की जांच करने के लिए पहली जरूरत यह है कि उस शख्स की पहचान की जाए जिसने ये कंपनियां बनाई हैं। उसके बाद हरेक छद्म कंपनी के बैंक खातों की पहचान करना और उसके कागजात इक_ïा करने की चुनौती खड़ी होती है। उसके बाद कंपनी की तरफ से किए गए हरेक लेनदेन के स्रोत और लाभकर्ता की पड़ताल करने की बारी आती है।'
कानूनी जानकार कहते हैं कि कंपनी के पंजीकरण के समय ही उसके स्वामित्व के बारे में सार्वजनिक उद्घोषणा को जरूरी कर दिया जाना चाहिए। इसके अलावा सालाना रिटर्न जमा नहीं करने वाली कंपनियों पर कार्रवाई को सुनिश्चित करने से भी छद्म कंपनियों पर शिकंजा कसा जा सकता है। हालांकि विशेषज्ञों के मुताबिक कंपनी रजिस्ट्रार के स्तर पर मौलिक और फर्जी कंपनियों की अलग शिनाख्त कर पाना खासा मुश्किल है। कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 248 में यह प्रावधान है कि कंपनी रजिस्ट्रार केवल दो तरह की स्थितियों में किसी कंपनी का पंजीकरण रद्द कर सकता है। पहला, अगर गठन के एक साल के भीतर वह कंपनी कामकाज शुरू करने में नाकाम रहती है और दूसरा, कोई निष्क्रिय कंपनी लगातार दो वित्तीय वर्षों में कोई भी कारोबारी गतिविधि नहीं करती है।
कॉर्पोरेट प्रोफेशनल्स के संस्थापक प्रबंध निदेशक पवन कुमार विजय का कहना है कि कानून किसी गैर-कामकाजी कंपनी की मौलिक कारोबारी जरूरतों की पहचान करने में सक्षम है और कंपनी अधिनियम, 2013 में निष्क्रिय कंपनियों की अवधारणा को स्पष्ट किया गया है। विजय कहते हैं, 'मुद्दा यह है कि क्या ऐसी कंपनियों के मालिक इन्हें बंद करने के इच्छुक हैं?'
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक बेनामी लेनदेन निषेध संशोधन अधिनियम, 2016 और कुछ हद तक मनी लॉन्डरिंग निरोधक अधिनियम, 2002 छद्म कंपनियों के दुरुपयोग को रोकने में मददगार हो सकता है। नांगिया ऐंड कंपनी के प्रबंधकीय साझेदार राकेश नांगिया कहते हैं कि अगर कोई संपत्ति छद्म कंपनी के नाम पर खरीदी गई है तो बेनामी अधिनियम में उस संपत्ति को जब्त करने, जुर्माना लगाने और दोषियों को सात वर्ष तक का कारावास देने का प्रावधान मौजूद है।
हालांकि भारत से बाहर बनाई गई छद्म कंपनियों के खिलाफ इन कानूनों को अमल में लाना बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। खेतान ऐंड कंपनी के साझेदार आनंद मेहता के मुताबिक, देश के बाहर अपनी आमदनी का स्रोत बताने वाली कंपनियों के लिए 'प्रबंधन की वास्तविक जगह' जैसी अवधारणा के जरिये कुछ हद तक रोक लगाई जा सकती है।
कोचर ऐंड कंपनी के वरिष्ठ साझेदार शाहिद खान कहते हैं कि मनी लॉन्डरिंग अधिनियम बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए यह जरूरी करता है कि वे अपने ग्राहकों के बारे में सटीक सूचना जुटाकर उसकी पुष्टि करें। लेकिन कानूनी जानकारों का मानना है कि न्यूनतम पूंजी की आवश्यकता में कटौती करने के बाद ऐसी छद्म कंपनियां बनाने के काम में तेजी आई है। विजय कहते हैं, 'पहले किसी कंपनी के लिए न्यूनतम एक लाख रुपये के पूंजीगत आधार की जरूरत होती थी लेकिन कंपनी पंजीकरण को सरल बनाने के लिए उस प्रावधान को भी खत्म कर दिया गया है।' इसके अलावा कंपनी के लिए अपनी शुरुआती पूंजी को बैंक में जमा करना भी अनिवार्य नहीं रह गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि छद्म कंपनियों के बारे में सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनके असली मालिकों के बारे में जानकारी ही नहीं मिल पाती है। दोषियों पर कार्रवाई के लिए उनकी पहचान जरूरी है और उसके लिए कानूनी प्रावधान सख्त करने होंगे। भारत को दूसरे देशों के साथ होने वाले द्विपक्षीय व्यापार समझौतों में इस तरह की जानकारी साझा करने का प्रावधान भी शामिल करना चाहिए। इससे विदेशी क्षेत्र में सक्रिय कंपनियों के लेनदेन की जानकारी जुटा पाना आसान हो जाएगा।
कानून में 'छद्म कंपनी' की कोई अवधारणा नहीं है। साधारण तौर पर इसका मतलब उन कंपनियों से है जो कंपनी अधिनियम और आयकर अधिनियम जैसे कानूनी प्रावधानों का पालन करते हैं लेकिन जमीनी स्तर पर उनकी कोई भी कारोबारी गतिविधि नहीं होती है। कोचर ऐंड कंपनी के वरिष्ठ साझेदार शाहिद खान कहते हैं, 'छद्म कंपनियों के असली मालिकों के बारे में अनभिज्ञता रहने से ये कंपनियां गैरकानूनी गतिविधियों के लिए मुफीद मानी जाती हैं। दरअसल जटिल कंपनी ढांचे की परतों के नीचे मालिकों की पहचान छिपी रह जाती है।'
छद्म कंपनियों से कोई कारोबारी मकसद पूरा होता है?
छद्म कंपनियों का वैध इस्तेमाल निवेश, परिसंपत्ति और होल्डिंग कंपनी के तौर पर होता रहा है। लेनदेन संरचना के अलावा कारोबार विस्तार के मकसद के हिसाब से भी ये कंपनियां मददगार होती हैं। आर्के ऐंड आर्के के साझेदार पल्लव प्रद्युम्न नारंग कहते हैं कि छद्म कंपनी शब्दावली के इस्तेमाल का कतई यह मतलब नहीं है कि अमुक कंपनी गैरकानूनी है या करों की चोरी करती है।
आसानी से कैसे हो शिनाख्त?
किसी कारोबार या आर्थिक वजह के अभाव में भी लेनदेन हो
लेनदेन में अनियमितता और असामान्यता दिखे
बड़ी मात्रा में नकदी जमा और निकाली जाए
बाजार के सामान्य ढर्रे से अधिक लेनदेन
किस तरह के कारोबार या उद्योग में छद्म कंपनियों की है अधिकता?
रियल एस्टेट, ट्रेडिंग और आधारभूत क्षेत्र में छद्म कंपनियों की अधिकता देखने को मिली है। अधिकांश बड़े कारोबारी समूहों में भी कई ऐसी कंपनियां हैं जो लंबे समय से निष्क्रिय पड़ी हुई हैं। कॉर्पोरेट प्रोफेशनल्स के विजय कहते हैं, 'रियल एस्टेट क्षेत्र में तो छद्म कंपनियों की सबसे अधिक संख्या है।'
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